Parsa Vidhan Sabha 2025: बिहार की राजनीति में सारण जिले की परसा विधानसभा सीट हमेशा से सुर्खियों में रही है। निर्वाचन क्षेत्र संख्या 121 मानी जाने वाली यह सीट सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र नहीं, बल्कि राजनीतिक परिवारों के दबदबे और बदलते समीकरणों का जीवंत उदाहरण है। परसा को खास बनाने वाली बात यह है कि 1951 से अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में 14 बार एक ही परिवार के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। यही कारण है कि यह सीट लालू प्रसाद यादव के समधी और बिहार के दिग्गज नेता चंद्रिका राय तथा उनके परिवार से जुड़कर और भी वीआईपी हो गई है।
चुनावी इतिहास
दरोगा प्रसाद राय, जो बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे, ने इस सीट से सात बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर परसा की सियासत को अपने नाम किया। 1977 के जेपी आंदोलन की लहर में हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 1980 में वे दोबारा विजयी हुए। उनके निधन के बाद 1981 के उपचुनाव में उनकी पत्नी प्रभावती देवी विधायक बनीं और उसके बाद चंद्रिका राय ने परिवार की राजनीतिक विरासत संभाली।
Amanour Vidhansabha 2025: जातीय समीकरण और सियासी जंग का बदलता चेहरा
चंद्रिका राय का राजनीतिक सफर बेहद दिलचस्प रहा है। 1985 में कांग्रेस से जीतने के बाद उन्होंने कांग्रेस से दूरी बनाई और 1990 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भी जीत हासिल की। इसके बाद वे जनता दल और फिर राजद से चुनाव लड़ते रहे। वे लगातार पांच बार विधायक चुने गए, लेकिन जेडीयू के छोटेलाल राय ने उन्हें दो बार लगातार मात देकर परसा की राजनीति को नया मोड़ दिया। हालांकि, 2015 में चंद्रिका राय ने शानदार वापसी करते हुए छोटेलाल राय को भारी मतों से हराया। लेकिन 2020 में परिस्थितियां बदलीं और आरजेडी के छोटे लाल राय ने चंद्रिका राय को हरा दिया। इस हार में लोजपा प्रत्याशी राकेश कुमार सिंह के वोटों ने भी अहम भूमिका निभाई।
जातीय समीकरण
परसा सीट का जातीय समीकरण भी इसे खास बनाता है। यहां यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं, जबकि राजपूत, ब्राह्मण, मुस्लिम और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) भी चुनावी गणित को प्रभावित करते हैं। यही वजह है कि किसी भी दल के लिए यह सीट आसान नहीं रही। जातीय संतुलन साधने वाला उम्मीदवार ही यहां सफलता की कुंजी पा सकता है।
Garhka Vidhansabha 2025: जातीय समीकरण और राजनीतिक इतिहास से तय होगी 2025 की बाज़ी
आज परसा विधानसभा सिर्फ एक सीट नहीं बल्कि यह बताती है कि बिहार की राजनीति में पारिवारिक विरासत, जातीय समीकरण और दलों के बदलते गठजोड़ किस तरह से चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं। आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राय परिवार अपना खोया वर्चस्व वापस हासिल कर पाता है या फिर नए समीकरण परसा के राजनीतिक भविष्य को तय करेंगे।






















