Warisnagar Vidhan Sabha 2025: समस्तीपुर जिले की वारिसनगर विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या-132) बिहार की राजनीति में हमेशा से खास मानी जाती रही है। इस सीट का राजनीतिक इतिहास बताता है कि यहां की जमीनी हकीकत जातीय समीकरणों, पुराने नेताओं की पकड़ और मौजूदा राजनीतिक हवा के बीच तय होती है।
चुनावी इतिहास
वारिसनगर में अब तक 18 बार चुनाव हो चुके हैं (1996 और 2009 के उपचुनाव समेत)। 2008 तक यह सुरक्षित सीट थी, लेकिन परिसीमन के बाद इसका आरक्षण का दर्जा खत्म हो गया। इसके बाद से यहां का चुनावी परिदृश्य और भी जटिल हो गया है।
पिछले तीन चुनावों से जेडीयू इस सीट पर लगातार जीत दर्ज कर रही है। मौजूदा विधायक अशोक कुमार 2010, 2015 और 2020 में जीतकर विधानसभा पहुंचे। 2020 के चुनाव में उन्होंने सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के फूलबाबू सिंह को 13,801 वोटों से हराया था। अशोक कुमार को 68,356 (35.97%) वोट मिले, जबकि फूलबाबू सिंह को 54,555 (28.71%) मत हासिल हुए।
Patepur Vidhan Sabha 2025: जातीय समीकरण और पुराने प्रतिद्वंद्वियों की जंग से तय होगी जीत?
वारिसनगर विधानसभा पर कांग्रेस की पकड़ 1995 के बाद से बिल्कुल कमजोर हो गई है। वहीं, बीजेपी यहां कभी बड़ी चुनौती नहीं बन सकी, सिवाय 1996 और 2009 के उपचुनाव के। एलजेपी ने 2009 उपचुनाव में जीत जरूर दर्ज की थी, लेकिन अगले ही विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने सीट वापस ले ली।
इस सीट पर लंबे समय तक महेश्वर हजारी के पिता रामेश्वर हजारी और पीतांबर पासवान का वर्चस्व रहा। रामेश्वर हजारी ने 1967, 1969, 1985 और 2000 में जीत हासिल की थी। वहीं, पीतांबर पासवान ने 1977, 1980, 1990 और 1995 में जीत दर्ज कर इस क्षेत्र की राजनीति को दिशा दी थी।
जातीय समीकरण
वारिसनगर पूरी तरह ग्रामीण इलाका है, जहां जातीय समीकरण चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। मुस्लिम, कोइरी, ब्राह्मण और पासवान मतदाता किसी भी उम्मीदवार की जीत-हार तय करते हैं। यादव और रविदास वोटरों की संख्या भी यहां अहम है। यही वजह है कि हर चुनाव में प्रत्याशी जातीय और स्थानीय समीकरणों को साधने की रणनीति बनाते हैं।
यहां की कुल आबादी लगभग 4.72 लाख है, जिसमें अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी करीब 19.11% है। 2019 की मतदाता सूची के अनुसार वारिसनगर में 3.04 लाख वोटर पंजीकृत हैं। दिलचस्प बात यह है कि यहां अब तक सबसे ज्यादा मतदान 1995 में हुआ था, जब 65.6% मतदाताओं ने वोट डाले थे।
वारिसनगर का राजनीतिक गणित बताता है कि यहां चुनावी जीत सिर्फ पार्टी के आधार पर नहीं, बल्कि जातीय समीकरणों, उम्मीदवार की साख और पुराने नेताओं की राजनीतिक विरासत पर भी निर्भर करती है। यही कारण है कि जेडीयू फिलहाल यहां मजबूत स्थिति में दिख रही है, लेकिन जातीय और सामाजिक समीकरण अगर बदले तो चुनावी तस्वीर भी बदल सकती है।






















