Ujiarpur Vidhan Sabha 2025: उजियारपुर विधानसभा सीट (संख्या 134) बिहार की राजनीति में अहम जगह रखती है। यह समस्तीपुर जिले का हिस्सा है और उजियारपुर संसदीय सीट के अंतर्गत आती है। 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई यह सीट अब तक तीन बार विधानसभा चुनाव देख चुकी है और फिलहाल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के कब्जे में है।
चुनावी इतिहास
इस सीट की सबसे खास बात यह है कि यहां यादव और कुशवाहा जाति के मतदाता चुनावी परिणाम तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि हर दल की रणनीति इन दोनों वर्गों को साधने पर केंद्रित रहती है। उजियारपुर की कुल आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 4.46 लाख है, जिनमें 94% से अधिक लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। यहां अनुसूचित जाति की आबादी भी करीब 19% है, जो चुनावी समीकरण में अहम योगदान करती है।
Warisnagar Vidhan Sabha 2025: जातीय समीकरणों और राजनीतिक विरासत से तय होती है जीत
2010 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार दुर्गा प्रसाद सिंह ने जेडीयू के राम लखन महतो को 13,031 मतों से हराकर इस सीट पर पार्टी का परचम लहराया था। इसके बाद 2015 में राजद के आलोक कुमार मेहता ने रालोसपा उम्मीदवार कुमार अनंत को 47,460 वोटों से मात दी और राजद की पकड़ मजबूत की। 2020 में फिर से आलोक कुमार मेहता ने मैदान मारा और इस बार उन्होंने भाजपा के शील कुमार रॉय को 23,268 मतों से परास्त किया। उन्हें कुल 90,601 वोट मिले, जबकि भाजपा को 67,333 वोटों पर संतोष करना पड़ा।
जातीय समीकरण
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उजियारपुर में जातीय गणित हमेशा से निर्णायक रहा है। यादव और कुशवाहा वोटों के ध्रुवीकरण के साथ ही दलित समुदाय की भूमिका भी हार-जीत तय करती है। यहां करीब 2.88 लाख पंजीकृत मतदाता हैं, जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 53% और महिला मतदाताओं की हिस्सेदारी 46% है। 2020 के चुनाव में यहां 61.6% मतदान हुआ था, जो इस क्षेत्र की जागरूकता को भी दर्शाता है।
आगामी चुनावों में उजियारपुर सीट पर मुकाबला और भी रोचक हो सकता है, क्योंकि भाजपा इस सीट पर अपनी पैठ मजबूत करने के लिए लगातार प्रयासरत है, वहीं राजद आलोक मेहता की जीत की हैट्रिक को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा। ऐसे में यादव-कुशवाहा समीकरण और दलित वोट बैंक का संतुलन यह तय करेगा कि उजियारपुर में किसकी सत्ता की राह बनेगी।






















