Beldaur Vidhansabha 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में बेलदौर सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 150) हमेशा से ही राजनीतिक दलों के लिए अहम रही है। खगड़िया जिले की यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई और तभी से जनता दल यूनाइटेड (JDU) का दबदबा यहां कायम है। विकास की बुनियादी जरूरतों—सड़क, सिंचाई, बिजली और उच्च शिक्षा—को लेकर जनता की उम्मीदें अभी भी अधूरी हैं, लेकिन इसके बावजूद यह सीट अब तक जदयू के खाते में ही रही है।
चुनावी इतिहास
पन्ना लाल पटेल का नाम बेलदौर की राजनीति में लगातार गूंजता रहा है। 2010 में उन्होंने 45,990 वोट पाकर जीत दर्ज की थी, जबकि 2015 के चुनाव में 63,216 वोट हासिल कर दूसरी बार विधानसभा पहुंचे। उस चुनाव में लोजपा के मिथलेश कुमार निषाद को 49,691 वोट मिले थे। 2020 में एक बार फिर से पटेल ने कांग्रेस के चंदन यादव को कड़े मुकाबले में 5108 वोटों के अंतर से हराया। दिलचस्प यह रहा कि 2020 में कांग्रेस और एलजेपी दोनों को लगभग बराबर मत मिले, जिससे साफ हुआ कि विपक्षी दलों के बीच बंटवारा जदयू के लिए फायदेमंद रहा।
जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की बात करें तो बेलदौर का राजनीतिक गणित पूरी तरह सामाजिक संरचना पर टिका हुआ है। यहां मुस्लिम मतदाता सबसे बड़ी संख्या में हैं और उनका रुझान किसी भी प्रत्याशी की जीत-हार का निर्धारण कर देता है। वहीं कोयरी और कुर्मी समुदाय के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। पिछड़ी जातियों की करीब 55 उपजातियां यहां रहती हैं, जिससे बेलदौर में राजनीति हर बार जटिल और समीकरण-आधारित हो जाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 4.69 लाख है, जिसमें अनुसूचित जाति का हिस्सा 14.57 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति का 0.04 प्रतिशत है। 2019 की मतदाता सूची के मुताबिक यहां 2.92 लाख पंजीकृत वोटर हैं।
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विश्लेषक मानते हैं कि बेलदौर में जदयू की पकड़ मजबूत है, लेकिन मतदाता अब विकास की मांग को लेकर ज्यादा मुखर हो रहे हैं। बार-बार के चुनावी वादों के बावजूद रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं का अभाव लोगों की नाराजगी को बढ़ा रहा है। ऐसे में आने वाले चुनाव में यह देखना अहम होगा कि क्या जदयू अपने पुराने जनाधार को बचा पाएगी या विपक्ष यहां नए सियासी समीकरण खड़े कर पाएगा।






















