Dhoraiya Vidhan Sabha 2025: बांका जिले की धौरैया विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 160) बिहार की राजनीति में हमेशा से चर्चा का केंद्र रही है। अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित यह सीट बांका लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। 1951 में पहली बार हुए चुनाव से लेकर अब तक धौरैया ने सत्ता परिवर्तन और दलों के उतार-चढ़ाव को कई बार देखा है। शुरुआती दौर में कांग्रेस का दबदबा यहां लगातार बना रहा, लेकिन समय के साथ जनाधार बदला और आज यह सीट राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के कब्जे में है।
चुनावी इतिहास
2015 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जेडीयू (JDU) के मनीष कुमार ने बीएलएसपी (BLSP) उम्मीदवार भूदेव चौधरी को 24 हजार से अधिक वोटों से हराकर सत्ता हासिल की थी। वहीं 2010 में भी मनीष कुमार ने आरजेडी उम्मीदवार नरेश दास को शिकस्त दी थी। लेकिन 2020 में परिदृश्य पूरी तरह बदल गया। भूदेव चौधरी ने इस बार आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ा और बेहद कड़े मुकाबले में मनीष कुमार को महज 2687 वोटों से हराकर जीत दर्ज की। इस परिणाम ने साबित किया कि धौरैया सीट पर मतदाता एकतरफा वोटिंग नहीं करते, बल्कि मुद्दों और समीकरणों के हिसाब से बार-बार अपना रुख बदलते हैं।
जातीय समीकरण
धौरैया विधानसभा का जातीय गणित भी यहां की राजनीति को गहराई से प्रभावित करता है। इस सीट पर मुस्लिम, रविदास और यादव समुदाय का बड़ा जनाधार है, जो चुनावी समीकरणों को निर्णायक बनाता है। इसके अलावा राजपूत, कोइरी, कुर्मी और पासवान मतदाता भी हर बार उम्मीदवार की जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। वहीं वैश्य और हरिजन समुदाय का वोट चुनावी परिणाम को प्रभावित करता रहा है। यही कारण है कि धौरैया को एक ‘मल्टी-कास्ट बैलेंस’ वाली सीट कहा जाता है।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, धौरैया विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग तीन लाख है। इनमें 1.56 लाख पुरुष और 1.39 लाख महिला मतदाता शामिल हैं। महिला मतदाताओं की लगातार बढ़ती भागीदारी से यहां के चुनावी परिणामों पर नया असर देखने को मिल सकता है।
धौरैया की चुनावी तस्वीर यह बताती है कि यहां कोई भी दल लंबे समय तक लगातार अपना वर्चस्व नहीं बनाए रख सका है। जहां एक ओर जेडीयू ने 2010 और 2015 में जीत दर्ज की, वहीं 2020 में आरजेडी ने बाजी पलट दी। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनावों में धौरैया सीट पर फिर से कड़ा मुकाबला देखने को मिलना तय है, क्योंकि यहां का वोटर हर बार बदलाव को प्राथमिकता देता रहा है।






















