Islampur Vidhan Sabha 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बजते ही नालंदा जिले की इस्लामपुर विधानसभा सीट (संख्या 174) पर सियासी हलचल तेज हो गई है। यह सीट लंबे समय से राजनीतिक दलों के लिए रणनीतिक रूप से अहम रही है। इस्लामपुर में सत्ता का रास्ता जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दों से होकर गुजरता है, जिसे नजरअंदाज करना किसी भी उम्मीदवार के लिए मुश्किल साबित हो सकता है।
चुनावी इतिहास
1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज कर अपनी पकड़ मजबूत दिखाई थी, लेकिन इसके बाद यहां सत्ता का संतुलन लगातार बदलता रहा। 1960 और 1980 के दशक में कांग्रेस ने वापसी की कोशिश की, वहीं 1990 और 1995 में सीपीआई को यहां जीत का स्वाद मिला। 2005 में जेडीयू की एंट्री ने राजनीतिक समीकरण पूरी तरह पलट दिया। जेडीयू ने 2005 से 2015 तक इस सीट पर लगातार कब्जा जमाए रखा। चंद्रसेन प्रसाद जैसे नेताओं ने जेडीयू को यहां मजबूत किया। 2015 में उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी बीरेंद्र गोप को करीब 20 हजार वोटों से हराकर पार्टी की पकड़ और मजबूत कर दी थी।
Biharsharif Vidhansabha 2025: सत्ता समीकरण, जातीय गणित और चुनावी इतिहास का दिलचस्प संगम
हालांकि 2020 में हालात बदले और राजद (RJD) के राकेश कुमार रौशन ने जेडीयू के किले को भेद दिया। उन्होंने चंद्रसेन प्रसाद को 3698 वोटों के छोटे अंतर से हराया। राकेश कुमार रौशन को 68088 और चंद्रसेन प्रसाद को 64390 वोट मिले थे। यह जीत न सिर्फ आरजेडी के लिए मनोबल बढ़ाने वाली साबित हुई बल्कि यह भी दिखाया कि इस सीट पर चुनावी मुकाबला कितना कांटे का हो चुका है।
जातीय समीकरण
इस्लामपुर की राजनीति को समझने के लिए जातीय समीकरण अहम है। यादव और कुर्मी मतदाता यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा मुस्लिम, पासवान और कोइरी समुदाय भी इस सीट पर नतीजे प्रभावित करते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इस क्षेत्र की जनसंख्या 4 लाख 3 हजार 551 है, जिनमें 89.51% ग्रामीण और 10.49% शहरी आबादी है। एससी की हिस्सेदारी 17.28% और एसटी की 0.05% है। वोटरों की बात करें तो पुरुष मतदाता 1.50 लाख (53.18%), महिला मतदाता 1.31 लाख (46.46%) और ट्रांसजेंडर मतदाता 9 दर्ज हैं।
अब सवाल है कि 2025 में जनता किसे मौका देगी। जेडीयू पिछली हार का बदला लेने के मूड में है तो राजद इस सीट को हर हाल में बचाने की रणनीति में जुटी है। स्थानीय स्तर पर विकास, बेरोजगारी और जातीय संतुलन इस बार भी सबसे बड़ा फैक्टर होंगे। ऐसे में इस्लामपुर की लड़ाई न सिर्फ नालंदा बल्कि पूरे बिहार की राजनीति पर असर डाल सकती है।






















