Nalanda Vidhan Sabha Election 2025: बिहार की राजनीति में नालंदा विधानसभा सीट (संख्या 176) का महत्व बेहद खास है। यह सिर्फ इसलिए हाईप्रोफाइल नहीं है कि यह सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला है, बल्कि इसलिए भी कि यहां से होने वाला राजनीतिक परिणाम सीधे-सीधे पूरे प्रदेश की सत्ता समीकरणों को प्रभावित करता है। नालंदा विधानसभा का गठन वर्ष 1977 में हुआ था और तब से अब तक यह सीट कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव की गवाह रही है।
चुनावी इतिहास
प्रारंभिक वर्षों में कांग्रेस के श्याम सुंदर प्रसाद यहां का बड़ा चेहरा बने। 1977 में जीत के बाद 1980 में निर्दलीय उम्मीदवार रामनरेश सिंह ने उन्हें हराकर राजनीतिक समीकरण बदल दिए। हालांकि 1985 में श्याम सुंदर प्रसाद ने वापसी की, लेकिन 1990 आते-आते रामनरेश सिंह ने फिर से अपनी पकड़ मजबूत कर ली। यही से नालंदा में जातीय समीकरण और राजनीतिक गठबंधन निर्णायक भूमिका निभाने लगे।
Islampur Vidhan Sabha 2025: जातीय समीकरण और राजनीतिक उठापटक से तय होगी जीत की राह
1995 का चुनाव इस सीट के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ। इसी साल समता पार्टी के टिकट पर श्रवण कुमार ने पहली बार जीत दर्ज की और तब से वे लगातार अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। 2000, फरवरी 2005, अक्टूबर 2005, 2010, 2015 और 2020 के चुनावों में वे विजयी रहे। इस तरह नालंदा में श्रवण कुमार की जीत का सिलसिला सातवीं बार तक पहुंच गया।
2015 का चुनाव खास तौर पर दिलचस्प रहा क्योंकि उस समय जेडीयू और बीजेपी अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरे थे। इस बार श्रवण कुमार को बेहद कड़ी टक्कर मिली और वे महज ढाई हजार वोटों के अंतर से जीत सके। जबकि 2020 में उन्होंने जनतांत्रिक विकास पार्टी के कौशलेंद्र कुमार को 16,000 से अधिक मतों से हराकर अपने गढ़ को और मजबूत कर लिया। कांग्रेस के उम्मीदवार गुंजन पटेल उस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे।
जातीय समीकरण
जातीय समीकरणों पर गौर करें तो नालंदा विधानसभा का खेल इन्हीं पर टिकता है। यहां यादव, पासवान और कुर्मी मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। राजपूत, भूमिहार और कोइरी भी अच्छी खासी संख्या में हैं, लेकिन सबसे बड़ी ताकत कुर्मी और अति पिछड़ा वर्ग का वोट बैंक है। नीतीश कुमार खुद कुर्मी समाज से आते हैं, और यही उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी है। यही कारण है कि बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टी भी यहां अब तक जीत का स्वाद नहीं चख सकी।
अब 2025 के चुनावी माहौल में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या श्रवण कुमार अपनी आठवीं जीत दर्ज कर पाएंगे या विपक्ष कोई बड़ा चमत्कार दिखाएगा। नालंदा का राजनीतिक रणक्षेत्र इस बार भी पूरे बिहार की राजनीति को दिशा देने वाला साबित हो सकता है।






















