Buxar Vidhan Sabha 2025: बिहार की राजनीति में ऐतिहासिक और रणनीतिक दोनों दृष्टि से बक्सर विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 200) की अपनी अलग पहचान है। गंगा किनारे बसा यह इलाका न केवल सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, बल्कि यह कई राजनीतिक प्रयोगों का भी गवाह रहा है। यह सीट बक्सर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और सामान्य (अनारक्षित) श्रेणी में है। लंबे समय तक कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहने वाला यह क्षेत्र अब बदलते जातीय और राजनीतिक समीकरणों के कारण एक बार फिर सुर्खियों में है।
चुनावी इतिहास
1951 में पहली बार अस्तित्व में आई बक्सर विधानसभा सीट ने अब तक 17 बार अपने प्रतिनिधि चुने हैं। शुरुआती दौर में कांग्रेस का यहां लगभग एकछत्र राज रहा। पहले चुनाव में कांग्रेस के लक्ष्मीकांत तिवारी विजयी रहे और इसके बाद कई दशकों तक कांग्रेस ने यहां अपना परचम लहराया। लेकिन 1977 में देशभर में उठी जेपी आंदोलन की लहर ने बक्सर की राजनीति का चेहरा बदल दिया। जनता पार्टी और वामपंथी दलों ने यहां कांग्रेस की मजबूत जड़ों को चुनौती दी।
1980 और 1990 के दशक में बक्सर ने कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे। 1990 और 1995 में सीपीएम ने लगातार दो बार इस सीट पर जीत दर्ज की, जबकि 2005 में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के उम्मीदवार ने सबको चौंकाते हुए सफलता हासिल की। दिलचस्प बात यह है कि राज्य की दो प्रमुख पार्टियां—राजद (RJD) और जदयू (JDU)—अब तक इस सीट पर जीत का स्वाद नहीं चख पाई हैं।
हाल के विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस के संजय तिवारी ने भाजपा उम्मीदवार परशुराम चौबे को पराजित कर पार्टी की वापसी कराई। यह परिणाम कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए ऊर्जा का नया स्रोत बना, जबकि भाजपा इस हार के बाद संगठनात्मक रूप से और मजबूती से मैदान में उतरने की तैयारी में है।
जातीय समीकरण
बक्सर विधानसभा का चुनाव हर बार जातीय समीकरणों के आधार पर नया मोड़ लेता है। इस सीट पर ब्राह्मण और यादव मतदाताओं की संख्या निर्णायक मानी जाती है। पूरे बक्सर संसदीय क्षेत्र में लगभग 3.75 लाख ब्राह्मण और 3.40 लाख यादव मतदाता हैं। इसके अलावा लगभग 2.90 लाख राजपूत और बड़ी संख्या में भूमिहार मतदाता भी हैं, जो चुनावी परिणामों को प्रभावित करते हैं।
मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 1.30 लाख है, जबकि कुर्मी, वैश्य, कुशवाहा, दलित और अतिपिछड़ी जातियों की भी मजबूत उपस्थिति है। खासकर अतिपिछड़ी जातियों का रुझान अक्सर चुनावी परिणाम को पलटने की क्षमता रखता है। यही वजह है कि सभी प्रमुख दल इस वर्ग को साधने की कोशिश में जुटे हुए हैं।






















