Dehri Vidhan Sabha 2025: बिहार की राजनीति में रोहतास जिले की डेहरी विधानसभा सीट (संख्या 212) एक ऐसा क्षेत्र है जिसने दशकों से सियासी विश्लेषकों और मतदाताओं दोनों को चौंकाया है। सोन नदी के किनारे बसा डेहरी, कभी बिहार का प्रमुख औद्योगिक हब हुआ करता था, लेकिन आज इसकी पहचान राजनीतिक उतार-चढ़ाव और सामाजिक समीकरणों से बनती है। 1951 में इस विधानसभा क्षेत्र की स्थापना हुई और 1952 में पहला चुनाव लड़ा गया। तब से लेकर अब तक डेहरी की सियासत ने कई दिलचस्प मोड़ देखे हैं।
चुनावी इतिहास
जहां बिहार के अधिकांश हिस्सों में 1950 के दशक में कांग्रेस का एकछत्र राज था, वहीं डेहरी ने शुरुआत से ही अलग रास्ता अपनाया। यहां की जनता ने पहले दो चुनावों में समाजवादी विचारधारा को चुना। 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के बसावन सिंह ने जीत दर्ज की, जबकि 1957 में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से दोबारा जीत हासिल की। इसके बाद कांग्रेस ने लगातार चार बार यहां कब्जा जमाया और 1985 तक डेहरी कांग्रेस का गढ़ बना रहा।लेकिन 1985 के बाद कांग्रेस की पकड़ ढीली पड़ी और डेहरी की सियासत ने नया चेहरा देखा — अल्पसंख्यक नेतृत्व का उदय। इस विधानसभा सीट से अब तक 18 चुनाव हुए हैं, जिनमें से 11 बार मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। यह अपने आप में बिहार की राजनीति में एक अनोखा रिकॉर्ड है।
डेहरी का नाम सबसे अधिक मोहम्मद इलियास हुसैन से जुड़ा है, जिन्होंने यहां से पांच बार जीत दर्ज की और 1990, 1995, और 2000 में लगातार हैट्रिक जीत हासिल की। उन्होंने डेहरी को न सिर्फ राजद के प्रभाव क्षेत्र में बनाए रखा बल्कि इसे बिहार की सियासी चर्चाओं का केंद्र बना दिया।2010 के चुनाव में इस परंपरा को तोड़ते हुए निर्दलीय उम्मीदवार ज्योति रश्मि ने जीत हासिल की। उन्होंने राजद के मोहम्मद इलियास हुसैन को 9,815 वोटों से हराया। लेकिन 2015 में इलियास हुसैन ने वापसी की और 3,898 वोटों से जीत दर्ज की — यह उनकी छठी और अंतिम जीत थी।
2019 के उपचुनाव में भाजपा ने पहली बार डेहरी सीट पर कब्जा जमाया, जब इलियास हुसैन की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। हालांकि, 2020 के चुनाव में राजद ने महज 464 वोटों के अंतर से यह सीट फिर से जीत ली। यही वजह है कि 2025 का चुनाव डेहरी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। भाजपा यहां वापसी की उम्मीद कर रही है, जबकि राजद अपने पुराने गढ़ को बरकरार रखने की लड़ाई में जुटी है।
जातीय समीकरण
यदि जातीय समीकरणों की बात करें, तो डेहरी विधानसभा में अनुसूचित जातियों की आबादी लगभग 16.91%, जबकि मुस्लिम मतदाता करीब 10.6% हैं। ग्रामीण मतदाता कुल आबादी का 65.27%, जबकि शहरी मतदाता 34.73% हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि डेहरी का फैसला हमेशा गांवों के जनमानस और अल्पसंख्यक समुदायों की दिशा तय करते हैं।






















