वर्ष 1977 का बिहार विधानसभा चुनाव ((Bihar Election 1977)) भारतीय राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। यह चुनाव आपातकाल की छाया में लड़ा गया, जहां कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। जयप्रकाश नारायण (जेपी) आंदोलन की पृष्ठभूमि में हुए इस चुनाव ने बिहार की राजनीति को नया रूप दिया और कांग्रेस के वर्चस्व को पहली बार गहरा झटका लगा।
जेपी आंदोलन का असर और कांग्रेस की पराजय
बिहार से शुरू हुए जेपी आंदोलन ने न केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश की राजनीति को प्रभावित किया था। 1975 में लागू किए गए आपातकाल के बाद जनता में कांग्रेस के खिलाफ असंतोष बढ़ता गया। 1977 के आम चुनाव में इसका असर स्पष्ट दिखा, जब कांग्रेस को बिहार विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा।
चुनाव की प्रक्रिया और महत्वपूर्ण घटनाएं
बिहार विधानसभा का कार्यकाल 19 मार्च 1978 तक था, लेकिन अप्रैल 1977 में केंद्र सरकार ने नौ राज्यों की विधानसभाएं भंग करने का निर्देश दिया। इसके बाद जून 1977 में बिहार में चुनाव कराए गए। जनता पार्टी के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला और जबरदस्त जीत दर्ज की।
सुगौली सीट पर वामदलों की दिलचस्प टक्कर
1977 के चुनाव में सुगौली विधानसभा सीट पर वामदलों के दो प्रमुख नेताओं के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के रामाश्रय सिंह और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) के भूप नारायण सिंह आमने-सामने थे। यह मुकाबला बेहद रोमांचक रहा, जिसमें रामाश्रय सिंह ने महज 93 वोटों से भूप नारायण सिंह को हराया।
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महिला प्रत्याशियों का प्रदर्शन
चुनाव में 96 महिला प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन उनमें से सिर्फ 13 ही जीत दर्ज कर सकीं। वहीं, 2898 पुरुष उम्मीदवारों में से 311 को जीत हासिल हुई। कुल 324 सीटों के लिए हुए इस चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी, लेकिन सफलता की दर कम रही।
चुनाव में प्रत्याशियों की स्थिति
जेपी आंदोलन की लहर में सभी पार्टियों के उम्मीदवार चुनावी मैदान में मजबूती से डटे थे। चुनाव में कुल 2994 उम्मीदवार उतरे, जिनमें से 2301 अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। 174 सीटों पर 6 से 10 प्रत्याशी थे, जबकि 70 सीटों पर 11 से 15 प्रत्याशी मैदान में थे। सबसे कम दो प्रत्याशी धनहा और मांझी सीट पर थे, जबकि पटना सेंट्रल विधानसभा क्षेत्र से सबसे अधिक 32 प्रत्याशी चुनाव लड़े।
1977 का बिहार विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए एक बड़ी हार साबित हुआ। यह चुनाव न केवल राज्य बल्कि पूरे देश की राजनीति में बदलाव की शुरुआत बना। जेपी आंदोलन के कारण उभरे कई युवा नेताओं ने अगले दशकों तक बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।





















