[Team insider] पारम्परिक लोकपर्व मंडा पूजा इस साल भी धूमधाम से मनाया जा रहा है। पिछले 2 वर्ष से कोरोना महामारी के कारण मंडा पूजा धूमधाम से नहीं बनाया जा सका था, लेकिन इस बार मिली छूट के कारण खासा उत्साह भक्तों में देखा जा रहा है। बता दें कि यह पर्व अच्छी बारिश, खेत-बारी और समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान भक्त 7 से 9 दिन तक लगातार उपवास करने के बाद आग पर चलने और ऊंचाई पर पीठ पर लगे हुक के सहारे झूलते हैं। मंडा पर्व के भक्त आराध्य भगवान भोले शंकर की पूजा अर्चना करते हैं।
फुलखुंदी के साथ हुए कई अनुष्ठान
रांची के चुटिया में महादेव मंडा स्थल पर मंडा पूजा के फुलकुंदी कार्यक्रम बुधवार की देर रात सम्पन्न हुआ। फुलखुंदी के साथ कई अनुष्ठान हुए। पारंपरिक तरीके से पूजा-अर्चना की गई। सायंकाल भोक्ताओं ने आग के ऊपर नंगे पांव चलकर भक्ति और शक्ति का परिचय दिया। यह कार्यक्रम शिव मंडा पूजा समिति चुटिया की ओर से आयोजित हुआ।
वहीं शोभायात्रा सह झूलन कार्यक्रम गुरुवार रात को भोक्ताओं द्वारा निकाली जाएगी। प्राचीन श्रीराम मंदिर से महादेव मंदिर तक शिव भक्तों की शोभायात्रा और राधा चक्र निकाला जाएगा। शाम में महादेव मंडा के प्रांगण में झूलन का आयोजन होगा।
मंडा पूजा का इतिहास भी काफी प्राचीन
मंडा पूजा का इतिहास भी काफी प्राचीन है। लोग बताते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत नागवंशी राजाओं के द्वारा की गई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार झारखंड में मनाई जाने वाली मंडा पूजा भगवान भोले शंकर की पहली पत्नी सती के बलिदान की याद के रूप में मनाई जाती है। ये भक्त दहकते अंगारों पर बच्चों को भी सिर के बल झुलाते हुए निकल जाते हैं।