[Team insider] मातृ दिवस पर सोशल मीडिया में मां के प्रति समर्पण, प्यार जताने की धूम मची है। मां-बाप को वृद्धाश्रम में रखने वाले भी सोशल मीडिया में पीछे नहीं हैं। हाल के दशक में इस दिवस को मनाने की नई परंपरा शुरू हुई है। हालांकि भारत की संस्कृति कुछ अलग ही रही है। यहां देश और धरती को भी मां की तरह पूजते हैं। बचपन से ही मां के प्रति संस्कार भरे जाते थे। अनेक घरों में तो रोज सुबह बच्चे मां-बाप के पांव छूकर दिनचर्या शुरू करते। बाहर जाना हो या कहीं से वापसी पांव छूते। अब तो नई पीढ़ी इस प्राचीन परंपरा को भूल चुकी है भले ही इस दिवस पर सोशल मीडिया में प्रेम का इजहार कर रही हो।
औरतों की तालीम होती तो अच्छे आदमी पैद होंगे
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आज से करीब डेढ़ सौ साल पहले की बात करें तो उस समय के अखबार बिहार बंधु ने 8 मई 1878 के अंक में इसी पर दिलचस्प टिप्पणी लिखी है। कुछ उसी की भाषा में ”फ्रांस के बादशाह नेपोलियन ने कहा है कि अपने देश को अच्छा बनाना चाहो तो ‘मां’ बनाओ। इसके मानी यह कि जमीन बनेगी तो फसल अच्छा फलेगा। औरतों की तालीम होती तो अच्छे आदमी पैद होंगे। चुनांचे फ्रांस, जरमन और इंगलैंण्ड वगैरह मुल्कों में औरतों की तालीम अच्छी होती है मगर अपने मुल्क में नहीं होती। इन दोनों मुल्कों की हालत मिलाई जावे तो किस अभागे के दिल पर नेपोलियन की बात नक्श न होगी। हम समझते हैं कि दोनों मुल्कों की औरतों की सूरत और हालत सामने-सामने दिखलाई जावे तो इस बात का बहुत बड़ा असर होगा। ”
जहां की औरतें भली वहां के मर्द भले
इस टिप्पणी के एक सप्ताह बाद अखबार 15 मई 1878 को फिर लिखता है कि ”किसी मुल्क के आदमियों की दुनियवी हालत मालूम करना हो तो उस देस की औरतों की हालत जानने से यह बात सहज में मालूम हो जायेगी कि जहां की औरतें भली हैं वहां मर्द भले होते हैं। जहां औरतें बुरी, मर्द बुरे होते हैं। सारे यूरप की हालत इस बात की आंख दिखाव गवाही देती हैं।
तालीम से बदली बंगाल के औरतों की सूरत
बंगाले गवा है अभी पचास बरस पहले बंगाली कैसे गंवार और भद्दे थे। इस घड़ी उनका इल्म और उनकी खुश वजई देखने लायक है। सबब यही कि औरतें तालीम पाने लगीं। बंगाले की औरतों के अखबार निकलते हैं और उनकी बहुतेरी किताबें बनी हैं। कोई कहे कि मर्दों के सुधरने से औरतें दुरुस्त हो जावेंगी यह कभी हो नहीं सकता।
अपने शहर की बदहाली
अपने इसी शहर में बहुत से कायस्थ, बाभन वगैरह यहां के वाशिन्दे अंग्रेजी दां अच्छे और अमीर उमरा, वकी मुख्तार अच्छे लायक और खुश वजा हैं। उनके जनानखाने की खबर लाई जाये तो मालूम हो जायेगा कि उनकी कैसी दुनयवी हालत है।
खोटा प्यार के बदले बचपन से देगी तालीम
खोटा प्यार करने के बदले बच्चे को बचपन में ही कुछ तालीम देगी, बचपन की शादी, शादी की फजूल खर्ची वगैरह बंद करने में अपने शौहर की मदद करेगी। दक्षिण पश्चिम और बंगाल में औरतों की तालीम खूब हो रही है।
जमाना आयेगा जब शादी में हर बात के पहले तालीम
हिंदुस्तान में सबसे पीछे बिहार ही पड़ा है। थोड़े ही दिनों में ऐसा जमाना आ जायेगा कि शादी में हर बात के पहले तालीम का ख्याल होगा। चाहिये जल्द से जल्द कदम बढ़ावें औरतों की तालीम पर पूरा ध्यान देवें हीं तो चंद रोज बाद दूसरे जिले के बिरादरियों से शादी व्यौहार बंद हो जावेगा और तुमलोग अंगरेजी राज में भी जंगली बने रहोगे।”