झारखंड की राजनीति के लिहाज से ग्यारह जनवरी का बहुत ही खास है, क्यांकि इस दिन राज्य के पूर्व दो मुख्यमंत्रियों का जन्मदिन है। उनमें से झारखंड राज्य के पुरोधा मानें जानें वाले शिबू सोरेन जिनके जिक्र के बिना झारखंड की चर्चा पूरी नहीं हो सकती। शिबू सोरेन को आदिवासियों के बड़े नेता के रूप में जाना जाता है। तो वहीं राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी। इन दोनों नेताओं का जन्मदिन 11 जनवरी को को हुआ था। दोनों पूर्व मुख्यमंत्री ने हार से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। शिबु सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं। वह केंद्र सरकार में भी मंत्री रह हैं। फिलहाल झारखंड मुक्ति मोर्चा से राज्यसभा सांसद हैं। वहीं बाबूलाल मरांडी झारखंड का पहले मुख्यमंत्री रहे हैं। वे भी अटलजी की सरकार में केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। दोनों ही नेता अलग-अलग पार्टी से संबंध रखते हैं।
आदिवासियों के बड़े नेता के रूप में जाना जाता है

शिबू सोरेन को आदिवासियों के बड़े नेता के रूप में जाना जाता है। संथाली भाषा में दिशोम गुरु कहकर बुलाया जाता है, जिसका अर्थ होता है देश का गुरु। वे झारखंड और देशभर में गुरुजी के नाम से ही ज्यादा पुकारे जाते हैं। उनका जन्म रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में 11 जनवरी 1944 को हुआ। उन्होंने ने दसवीं तक पढ़ाई की। सूदखोरी और शराबबंदी का विरोध करने पर महाजनों ने 27 नवंबर 1957 को उनकी हत्या करवा दी। इसके बाद शिबू सोरेन ने आदिवासी हितों के लिए संघर्ष शुरू किया। 1970 में उन्होंने महाजनों के खिलाफ धान काटो आंदोलन चलाया।
आदिवासियों की जमीन को धोखे से हड़पने वाले जमींदारों के खेतों की फसल को वो सामूहिक ताकत के दम पर काटने लगे। इसके बाद उन्होंने साल 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन फैसला लिया। इसी दौरान उन्होंने अलग झारखंड आंदोलन को फिर से हवा दी। 25 जून 1975 को जब आपातकाल की घोषणा हुई तो इंदिरा गांधी ने उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया था। शिबू सोरेन ने तब आत्मसमर्पण कर दिया।
1980 में उन्होंने दुमका से पहली बार लोकसभा चुनाव जीता
1977 में शिबू सोरेन सियासत की तरफ मुड़े लेकिन टुंडी से विधानसभा चुनाव हार गए। फिर उन्होंने संथाल को अपनी कर्मभूमि चुना। 1980 में उन्होंने दुमका से पहली बार लोकसभा चुनाव जीता और झारखंड मुक्ति मोर्चा के पहले सांसद बने। वो यहां से 8 बार सांसद रह चुके हैं। 2002 और 2020 में वे दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे। यूपीए सरकार में 23 मई 2004 को शिबू सोरेन कोयल और खनन मंत्री बनाए गए थे। उन्होंने तीन बार झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री पद भी संभाला लेकिन कभी भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। विधानसभा चुनाव 2005 में राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने का न्योता भेजा।
2 मार्च 2005 को वे सीएम बनाए गए लेकिन जरूरी विधायकों की संख्या नहीं हासिल करने पर 10 दिन बाद ही 12 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद सांसद रहते हुए शिबू सोरेन 27 अगस्त 2008 को दोबारा सीएम की गद्दी पर बैठे। लेकिन एक परीक्षा अब भी पास करना बाकी था। झटका तब लगा जब वे 8 जनवरी को तमाड़ विधानसभा उपचुनाव हार गए। नतीजतन 144 दिनों बाद 18 जनवरी 2009 को सरकार गिर गई और झारखंड में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। शिबू सोरेन को तीसरी बार सीएम बनने का मौका 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक 152 दिनों के लिए मिला।
दो बार दिशोम गुरु से चुनावी समर में पराजित हुए

वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड विधानसभा में बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी किसान परिवार में जन्मे बाबूलाल मरांडी ने गिरिडीह के देवरी में प्राथमिक विद्यालय में बतौर शिक्षक नौकरी की। फिर विभागीय अधिकारियों से कुछ ऐसी बात हो गई कि शिक्षक बाबूलाल मरांडी ने राजनीति की राह पकड़ ली। विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय होने के बाद बाबूलाल मरांडी वर्ष 1990 में बीजेपी के संथाल परगना के संगठन मंत्री के रूप में काम किया। दो बार दिशोम गुरु से चुनावी समर में पराजित होने के बाद वर्ष 1998 में उन्होंने शिबू सोरेन को और फिर 1999 में उनकी पत्नी रूपी सोरेन को हराकर अपनी राजनीतिक धाक जमाई।
अपनी एक अलग पार्टी बनाई और संघर्ष किया
केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में बाबूलाल मरांडी मंत्री बने, और जब नवंबर 2000 में झारखंड राज्य अस्तित्व में आया तो बीजेपी आलाकमान ने विश्वास जताते हुए उन्हें राज्य की बागडोर सौंप दी। बाद में दलगत मतभेद के बाद वर्ष 2016 में उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा नाम से अपनी एक अलग पार्टी बनाई और संघर्ष किया। इसके 14 साल बाद 2020 में उन्होंने अपने दल को बीजेपी में विलय कर लिया और एक बार फिर झारखंड में बीजेपी के सर्वमान्य नेता बन गए।