बिहार विधान परिषद की पांच सीटों पर हुए चुनाव ने पूरे बिहार की राजनीति का नया रूप दिखाया। किसी सीट पर कोई लहर नहीं दिखी। लेकिन किसी की बादशाहत बुलंदी पर कायम रही तोतो किसी नए-नवेले ने पुराने किले को उखाड़ दिया। तो एक सीट वो भी रही, जहां सरकार में बैठे महागठबंधन और विपक्ष से सत्ता में आने का सपना देख रहे भाजपा के बीच से जीत तीसरा उम्मीदवार खींच ले गया। हर सीट के रंग अलग, नतीजे अलग और कहानी अलग।
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प्रशांत ने कर दिया कमाल, भाजपा-महागठबंधन देखते रह गए
बिहार विधान परिषद की पांच सीटों पर हुए चुनाव में सबसे बड़ा उलटफेर सारण शिक्षक निर्वाचन सीट पर हुआ। इस सीट पर केदार पांडेय के निधन के बाद उपचुनाव हुआ है। महागठबंधन ने तो अपनी ओर से केदार पांडेय के बेटे आनंद पुष्कर को मैदान में उतारा। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। सहानुभूति के रास्ते महागठबंधन उम्मीदवार जीत की मंजिल तक नहीं पहुंच सके। इसके अलावा महागठबंधन में बिखराव भी आनंद पुष्कर की हार का कारण माना जा रहा है। दरअसल, निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े जयराम यादव को 2000 से अधिक वोट मिले। जयराम यादव और जदयू की करीबी जगजाहिर हैं। उनकी पत्नी संगीता यादव जदयू में ही हैं। महागठबंधन में इस बिखराव को भी हार का कारण माना जा रहा है। इसमें जीत मिली उस अफाक अहमद को, जो प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान के साथी हैं। बेतिया के रहने वाले अफाक अहमद की जीत ने प्रशांत के कमाल को दिखाया है। बताया जाता है कि प्रशांत की कोशिशों के कारण ही सारण से विधान पार्षद सच्चिदानंद राय ने अफाक अहमद को सपोर्ट किया और उनकी जीत सुनिश्चित हुई। अफाक अहमद को कुल मिलाकर 3055 वोट मिले। आनंद पुष्कर को 2381 वोट मिले। जबकि भाजपा प्रत्याशी धर्मेंद्र कुमार को सिर्फ 495 वोट मिले। भाजपा प्रत्याशी से अधिक निर्दलीय उम्मीदवार जयराम यादव को 2080 वोट और चंद्रमा सिंह को 1255 वोट मिले।
सारण स्नातक सीट पर दूसरी बार जदयू का दम
सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से एक बार फिर जदयू ने जीत दर्ज करने में सफलता पा ली है। भाजपा ने मुश्किलों को बढ़ाने के लिए कोशिशें तो कीं लेकिन महाचंद्र सिंह जदयू उम्मीदवार वीरेंद्र नारायण यादव को हरा नहीं सके। लगातार दूसरी बार वीरेंद्र नारायण यादव ने सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से जीत दर्ज की है। हालांकि कुछ महीनों पहले एमएलसी वीरेंद्र नारायण यादव का नाम एक घोटाले में आया था। वो घोटाला जेपी यूनिवर्सिटी में हुए रजिस्ट्रेशन से जुड़ा था। निगरानी ने अपनी जांच में एमएलसी सह तत्कालीन डीएसडब्ल्यू जेपीयू डॉ. वीरेंद्र नारायण यादव को अपने घेरे में ले लिया था। लेकिन उन आरोपों का असर चुनाव पर नहीं पड़ा और वीरेंद्र नारायण यादव ने आसान जीत दर्ज की।
कोसी में महागठबंधन ही बम-बम
पांच सीटों पर हुए चुनाव में सारण और गया में भले ही महागठबंधन को संघर्ष करना पड़ा हो, कोसी में कोई संघर्ष नहीं हुआ। यहां महागठबंधन को जीत में कोई मुश्किल नहीं हुई। बिहार विधान परिषद के कोसी शिक्षक निर्वाचन सीट पर जदयू ने बड़ी जीत दर्ज की है। डॉ. संजीव कुमार सिंह ने लगातार चौथी बार इस सीट पर कब्जा किया है। इस चुनाव में कोसी में भाजपा एक बार फिर कमल खिला पाने में असफल रही। यहां तक की भाजपा प्रत्याशी रंजन कुमार की जमानत भी जब्त हो गयी। दरअसल, कोसी शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र पर संजीव कुमार सिंह के परिवार का ही लंबे समय से कब्जा रहा है। 1974 में पहली बार संजीव कुमार सिंह के पिता शारदा प्रसाद सिंह निर्वाचित हुए थे। इसके बाद 2008 तक वे लगातार सीट पर बने रहे। सितम्बर 2008 में शारदा प्रसाद सिंह के निधन के बाद 2009 में उपचुनाव हुआ तो डॉ संजीव कुमार सिंह की इंट्री हुई। डॉ. संजीव ने भी जीत दर्ज की। इसके बाद 2011, 2017 और 2023 में भी जीत का सिलसिला जारी है।
गया में खिला ‘कमल’, JDU हैट्रिक से चूका
बीजेपी एमएलसी प्रत्याशी जीवन कुमार ने गया शिक्षक विधान परिषद क्षेत्र से जीत हासिल कर महागठबंधन को बड़ा झटका दिया है। इससे पहले दो बार जीत चुके महागठबंधन उम्मीदवार संजीव श्याम सिंह इस बार जीत की हैट्रिक नहीं लगा सके। संजीव श्याम सिंह इस पद के लिए पिछले कई चुनावों से किस्मत आजमा रहे थे। 2011 में पहली बार जीते संजीव श्याम सिंह ने 2017 में जीत दुहराई थी। लेकिन 2023 के चुनाव में जीवन कुमार ने उनसे सीट छीन ली। वहीं भाजपा प्रत्याशी जीवन कुमार ने पहली बार चुनावी राजनीति में आए। आने के साथ ही जीते जीवन कुमार ने गया में कमल खिला दिया।
छठी बार जीते अवधेश नारायण सिंह
भाजपा ने आखिरकार गया में महागठबंधन को पूरी तरह पछाड़ दिया। शिक्षक निर्वाचन सीट पर भाजपा के जीवन कुमार को पहले ही जीत मिल चुकी थी। अब स्नातक निर्वाचन सीट पर भी भाजपा ने जीत दर्ज कर ली है। स्नातक निर्वाचन सीट पर भाजपा के चार बार एमएलसी रहे अवधेश नारायण सिंह ने कांटे की टक्कर में पुनीत कुमार को शिकस्त दी है। पुनीत कुमार राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे और पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह के भाई हैं। 1993 में पहली बार अवधेश नारायण सिंह ने विधान परिषद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। दूसरी बार जब उन्होंने जीत हासिल की तो दूसरे प्रत्याशियों की ज़मानत तक जब्त हो गई। बिहार का बंटवारा होने के बाद गया निर्वाचन क्षेत्र से लड़े और जीते उसके बाद से उन्हें कोई न कोई पद मिलता रहा। अवधेश नारायण सिंह इससे पहले 5 बार विधान पार्षद चुने जा चुके हैं और ये छठा मौका है जब उन्होंने जीत हासिल की है।