बढ़ती उम्र के साथ आपके परिजनों में भूलने के लक्षण दिखने लगे तो इसे सिर्फ बुढ़ापे का कारण मानकर नजरअंदाज न करें। हो सकता है, वे अल्जाइमर की गिरफ्त में आ रहे हों। दुनियाभर में 50 साल से ज्यादा उम्र के 8 प्रतिशत से ज्यादा और 70 साल से उम्र के 20 से 25 प्रतिशत लोग इस बीमार से प्रभावित हैं। यह संख्या लगातार बढ़ रही है।
अल्जाइमर एवं मस्तिष्क जागरूकता माह के मौके पर फोर्ड हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, पटना में एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया था जिसमें वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डॉ. धीरज कुमार ने अल्जाइमर से सतर्क रहने के लिए लोगों को अपनी बेबाक राय दी है। उन्होंने कहा कि मैं खुद हर रोज औसतन एक अल्जाइमर मरीज को देखता हूं। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि देशभर में कितने लोग अल्जाइमर से प्रभावित हैं।
डॉ. धीरज ने कहा कि आहार में पोषक तत्वों की कमी, नींद की कमी और तनाव अल्जाइमर का प्रमुख कारण है। मगर अच्छी बात है कि इसपर काबू पाया जा सकता है। कुछ जरूरी दवाओं के साथ दिनचर्या में बदलाव लाकर इससे छुटकारा पा सकते हैं। उन्होंने कहा कि अल्जाइमर में धीरे-धीरे याददाश्त की कमी होने लगती है। इसमें मरीज हमेशा जुबान पर नहीं रहने वाली और बातचीत में नहीं आने वाली चीजें पहले भूलता है। इसके बाद अपनी दैनिक दिनचर्या और धीरे-धीरे अपना नाम-पता तक भूल जाता है। अमूमन यह बीमारी 45-50 साल की उम्र के बाद शुरू होती है।
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इसकी जांच के लिए मरीज के दिनभर के क्रियाकलापों को याद करके बताने के लिए कहा जाता है। इसकी पुष्टि के लिए एमआर कराई जाती है। एमआरआई में मस्तिष्क का जो हिस्सा याददाश्त के लिए जिम्मेदार है उससे कम सिग्नल मिलने लगता है तो समझा जाता है कि मरीज अल्जाइमर से पीड़ित है। जहां तक इलाज की बात है। इसकी रोकथाम के लिए दवाएं आ गयी हैं। लेकिन सतर्कता के लिए स्टेनलेस स्टील या एलुमिनियम के एक छोटे से प्लेट में नाम-पता लिखकर मरीज के गले में धागे से टांग देना चाहिए ताकी कहीं खो जाने पर उसे ढ़ूंढ़ने में आसानी हो।
अल्जाइमर के मरीज के खाने-पीने में पोषक तत्वों को शामिल करें। हालांकि यहां यह भी ध्यान देना जरूरी है कि कुछ ऐसे भी विटामिन हैं, जो इस बीमारी को और बढ़ा सकते हैं। ऐसे में संतुलित आहार डॉक्टर या विशेषज्ञ की सलाह पर ही लें। एक रोचक तथ्य यह भी है कि कुछ विशेष रोगों में भी याददाश्त की कमी हो जाती है। ऐसे में बिना जांच के इसे अल्जाइमर मान लेना गलत है।
डॉ. धीरज ने लोगों को मस्तिष्क से जुड़े रोगों से भी बचने की विशेष सलाह दी। उन्होंने कहा कि मस्तिष्क के किसी खास हिस्से में दर्द, बैक पेन, गर्दन में दर्द, चमकी आना, शरीर के एक हिस्से में कमजोरी आना, किसी विशेष अंग का फड़कना, पैर-हाथ कड़ा होना, आंख की रोशनी में कमी आना, याददाश्त की कमी, सुनाई कम देना, सूंघने या स्वाद लेने की क्षमता में कमी, चलने में लड़खड़ाहट, बार-बार खांसी होना, चेहरे या किसी अंग में सूनापन जैसे लक्षण दिखे तो डॉक्टर से जरूर मिलें।
अल्जाइमर एवं मस्तिष्क जागरूकता माह के मौके पर फोर्ड हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. संतोष कुमार ने कहा कि अल्जाइमर इन दिनों पूरी दुनिया में एक बड़ी समस्या बनकर उभर रही है। इसमें देखा गया है कि मरीज की जीवन प्रत्याशा तो बढ़ जाती है मगर वे बौद्धिक रूप से अक्षम हो जाते हैं और वे समाज में एक बोझ के रूप में समझे जाने लगते हैं।