Ara Vidhan Sabha 2025: बिहार की राजनीति में भोजपुर जिले की आरा विधानसभा सीट (संख्या 194) हमेशा से सुर्खियों में रही है। यह न केवल एक विधानसभा सीट है बल्कि आरा लोकसभा क्षेत्र का अहम हिस्सा भी है। इस सीट की सियासी कहानी बताती है कि यहां किस तरह कांग्रेस के लंबे दबदबे को सोशलिस्ट, जनता दल और फिर भाजपा ने धीरे-धीरे खत्म कर दिया। आरा की राजनीति जातीय समीकरण, गठबंधन की रणनीति और उम्मीदवारों के वर्चस्व के इर्द-गिर्द घूमती रही है।
चुनावी इतिहास
1951 में अस्तित्व में आई इस सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन 1969 में पहली बार उसे हार का स्वाद चखना पड़ा। उसके बाद से कांग्रेस कभी वापसी नहीं कर सकी। 1970 के दशक में लोकदल और जनता पार्टी ने अपनी पकड़ मजबूत की, वहीं 1990 के दशक के बाद भाजपा यहां लगातार प्रभावी रही। भाजपा के वरिष्ठ नेता अमरेंद्र प्रताप सिंह ने इस सीट पर चार बार जीत दर्ज कर अपना वर्चस्व साबित किया। 2000, फरवरी 2005, अक्टूबर 2005 और 2010 में उन्होंने लगातार जीत हासिल की।
हालांकि, 2015 के विधानसभा चुनाव में जब जेडीयू और राजद एक साथ आए, तब भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में अमरेंद्र प्रताप सिंह मात्र 666 वोटों से पीछे रह गए थे, जबकि उन्हें अजेय माना जाता था। लेकिन 2020 में फिर हालात बदले और भाजपा ने इस सीट पर वापसी करते हुए जीत दर्ज की।
2020 के चुनाव में अमरेंद्र प्रताप सिंह ने सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के प्रत्याशी कयामुद्दीन अंसारी को कड़े मुकाबले में हराया। भाजपा को 71,781 वोट (45.05%) मिले, जबकि अंसारी को 68,779 वोट (43.17%) प्राप्त हुए। वोटों का अंतर मात्र 3002 रहा, जिससे साफ है कि मुकाबला बेहद नजदीकी था और महागठबंधन ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी।
जातीय समीकरण
आरा विधानसभा सीट पर राजनीति का सबसे बड़ा आधार यादव और राजपूत वोटर रहे हैं। इन दोनों समुदायों का चुनावी नतीजों पर निर्णायक असर पड़ता है। इसके साथ ही लगभग 10% मुस्लिम आबादी भी चुनावी समीकरण को प्रभावित करती है। यही वजह है कि महागठबंधन यादव-मुस्लिम समीकरण पर दांव खेलता है, जबकि भाजपा राजपूत और सवर्ण वोटरों को मजबूत आधार मानती है।
पिछले चुनाव में इस सीट पर लगभग 2.75 लाख वोटर थे, जिनमें से 1.45 लाख पुरुष मतदाता थे। 2025 का चुनाव आते-आते यह संख्या और बढ़ सकती है, जिससे मुकाबला और भी रोचक हो जाएगा।
आरा की सियासत इस बार फिर भाजपा और महागठबंधन के बीच टकराव को देखने वाली है। भाजपा अमरेंद्र प्रताप सिंह के पुराने वर्चस्व और संगठनात्मक मजबूती पर भरोसा कर रही है, वहीं विपक्ष यादव-मुस्लिम समीकरण और स्थानीय असंतोष को मुद्दा बनाकर चुनावी समर में उतरेगा। आरा का चुनाव इस बार भी बिहार की राजनीति की दिशा तय करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।