Arwal Vidhansabha 2025: बिहार की राजनीति में अरवल विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 214) हमेशा से अप्रत्याशित नतीजों के लिए जानी जाती रही है। यह वह सीट है जहां किसी एक दल का लंबे समय तक वर्चस्व कभी नहीं रहा। अरवल की राजनीतिक फिज़ा हर चुनाव में करवट बदलती है। पिछले चार विधानसभा चुनावों में यहां चार अलग-अलग दलों ने जीत दर्ज की है — जो इस बात का संकेत है कि मतदाता यहां जाति या दल से अधिक प्रत्याशी के प्रदर्शन और स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं।
चुनावी इतिहास
अरवल जिले की इस सीट से अब तक कुल 17 बार विधायक चुने जा चुके हैं। इनमें सबसे उल्लेखनीय नाम निर्दलीय कृष्णानंदन प्रसाद सिंह का है, जिन्होंने 1980 से 1990 तक लगातार तीन बार चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया था। यह दौर अरवल में निर्दलीय राजनीति के उभार का प्रतीक था। अब तक यहां चार बार निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है, जबकि आरजेडी, एलजेपी, भाकपा और कांग्रेस ने दो-दो बार जीत दर्ज की है। भाजपा, जनता दल, जनता पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी को अब तक एक-एक बार सफलता मिली है।
Dehri Vidhan Sabha 2025: जहां राजनीति में मुस्लिम नेताओं का दबदबा और मुकाबला हमेशा रहा दिलचस्प
कांग्रेस की बात करें तो उसका प्रभाव अरवल में दशकों पहले ही समाप्त हो चुका। आखिरी बार 1962 में उसने जीत देखी थी। उसके बाद यहां नई राजनीतिक धारा ने जन्म लिया — खासकर वामपंथी और समाजवादी विचारधारा की। 1995 में जनता दल के रविंद्र सिंह ने जीत हासिल की और यह जीत उस दौर की राजनीति में बदलाव की प्रतीक बनी। वहीं, 2000 में राजद के अखिलेश प्रसाद सिंह ने जीत दर्ज की, जबकि 2005 में लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के दुलारचंद सिंह ने लगातार दो बार जीतकर अरवल की राजनीति में नई लकीर खींच दी।
2010 में भाजपा के चितरंजन कुमार ने इस सीट पर कब्जा जमाया, लेकिन 2015 में राजद के रविंद्र सिंह ने उन्हें 17,810 वोटों से हराकर सत्ता वापसी की। इसके बाद 2020 में भाकपा (माले) (लिबरेशन) के महानंद सिंह ने भाजपा के दीपक कुमार शर्मा को 19,000 से अधिक वोटों से हराकर अरवल को वाम गठबंधन के पाले में पहुंचा दिया। यह जीत सिर्फ राजनीतिक नहीं थी, बल्कि यह किसान-मजदूर वर्ग और वामपंथी विचारधारा की पुनर्स्थापना का प्रतीक भी थी।
जातीय समीकरण
अब 2025 के विधानसभा चुनाव की दस्तक के साथ यह सवाल उठ रहा है कि क्या अरवल फिर से किसी नए विजेता को चुनेगा, या इस बार स्थिरता का दौर शुरू होगा। राजनीतिक समीकरणों के साथ-साथ जातीय गणित भी यहां बेहद निर्णायक भूमिका निभाने वाला है। 2020 के आंकड़ों के अनुसार अरवल में अनुसूचित जाति के मतदाता कुल आबादी का करीब 21.23% हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता लगभग 9.4% हैं। पिछड़े और अत्यंत पिछड़े वर्ग का अनुपात भी यहां मजबूत है, जो किसी भी प्रत्याशी की जीत या हार तय करने में अहम भूमिका निभाता है।






















