बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (BPSC) की असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्ति प्रक्रिया एक बार फिर सवालों के घेरे में है। पहले आरक्षण रोस्टर और बैकलॉग रिक्तियों को लेकर उठे सवालों के बाद अब अभ्यर्थियों के चयन के मानदंड, रिक्तियों और अर्हताओं पर भी चिंता जताई जा रही है। ताजा मामला समाजशास्त्र विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के चयन से जुड़ा है, जहां कुछ अभ्यर्थियों के चयन को लेकर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एसएम कॉलेज में समाजशास्त्र के गेस्ट फैकल्टी रहे और इस चयन प्रक्रिया के अभ्यर्थी अजीत कुमार सोनू ने आरोप लगाया है कि ऐसे उम्मीदवारों का चयन किया गया है जिनकी पीएचडी डिग्री आयोग द्वारा जारी विज्ञापन में निर्धारित तिथि के बाद प्राप्त हुई थी। सोनू ने इस मामले में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, शिक्षामंत्री, शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव और विश्वविद्यालय सेवा आयोग के अध्यक्ष को पत्र लिखकर मामले की जांच की मांग की है। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके पास इस संबंध में साक्ष्य मौजूद हैं।
सोनू ने यह भी मांग की है कि इन चयनित अभ्यर्थियों के विश्वविद्यालय आवंटन पर रोक लगाई जाए और उनकी शैक्षणिक प्रमाणपत्रों, अनुभव प्रमाणपत्रों और शोध पत्रों की जांच कराई जाए। इस बीच, अभ्यर्थी राजीव कुमार पोद्दार ने समाजशास्त्र में चयनित विभिन्न शिक्षकों के अनुभव प्रमाणपत्रों पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने आरटीआई के माध्यम से जानकारी मांगी है और यह आरोप लगाया है कि कुछ प्रमाणपत्रों की तिथि भी नहीं दी गई है।
इस बीच, चयन प्रक्रिया में मानदंडों में बदलाव का मुद्दा भी उठा है। एक दिन पहले आयोग ने प्राचीन भारतीय इतिहास के लिए निर्धारित इंटरव्यू को स्थगित कर दिया। यह निर्णय उस वक्त लिया गया जब यह पता चला कि 11 नई डिग्रियों और विषयों को चयन प्रक्रिया में शामिल कर लिया गया था, जो विज्ञापन में नहीं थे। इन बदलावों को लेकर एक अभ्यर्थी ने अदालत में याचिका दायर की थी, जिसके बाद कोर्ट के आदेश पर आयोग ने इंटरव्यू स्थगित कर दिया।
इसी बीच, टीएमबीयू के पूर्व हेड बिहारी लाल चौधरी ने आयोग को ई-मेल भेजकर आपत्ति जताई थी कि जिन 55 पदों पर बहाली के लिए अभ्यर्थियों का चयन किया गया है, उनमें से 42 पदों पर पहले ही बीपीएससी से बहाली हो चुकी है। इस पर आयोग ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन अब इंटरव्यू स्थगित होने के बाद इस मुद्दे पर आगे प्रक्रिया होने की संभावना जताई जा रही है।
इसके पहले भी कई अभ्यर्थियों ने आरक्षण रोस्टर के पालन में गड़बड़ी और बैकलॉग रिक्तियों की गलत गणना का आरोप लगाते हुए कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी। कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी और आपत्तियों के निराकरण के बाद ही प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने का निर्देश दिया था।
इसके अलावा चयन प्रक्रिया में कुछ और गंभीर आरोप लग रहे हैं, जिनमें से प्रमुख यह है कि बार-बार एक्सपर्ट क्यों बुलाए गए और कुछ अभ्यर्थियों को सफल बनाने के लिए स्क्रूटिनी दो-तीन बार की गई। इसके अलावा, सोशियोलॉजी और प्राचीन इतिहास जैसे विषयों में, जिन अभ्यर्थियों का अकादमिक रिकॉर्ड बेहतरीन था, उन्हें जर्नल प्रकाशन, इंटरव्यू आदि में कम नंबर देने का भी आरोप है। कुछ नए विषयों को विज्ञापन के बाद भी चयन प्रक्रिया में शामिल किया गया, जो कि नियमों के खिलाफ था। इनमें से कुछ विषयों के लिए एक्सपर्ट बुलाकर उन विषयों को गलत तरीके से चयन प्रक्रिया में सम्मिलित किया गया, जो कि विज्ञापन में घोषित किए गए विषयों से अलग थे।
यह पूरी प्रक्रिया अब जांच का विषय बन चुकी है। अगर जांच हुई तो आयोग के अधिकारी, कर्मचारी सभी घेरे में आएंगे। सरकार से इस पूरे मामले की निगरानी करने की मांग की जा रही है, ताकि इस चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके और जो योग्य उम्मीदवार छंटने का आरोप लगा रहे हैं, उन्हें न्याय मिल सके।