Bakhri Vidhansabha 2025: बिहार की राजनीति में बखरी विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या-147) हमेशा से सुर्खियों में रही है। बेगूसराय जिले की यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का दशकों से गढ़ मानी जाती रही है। सीपीआई ने यहां अब तक 10 बार जीत दर्ज की है, लेकिन पिछले तीन चुनावों के नतीजे बताते हैं कि यहां का राजनीतिक गणित अब केवल परंपरागत आधार पर नहीं टिका है, बल्कि जातीय समीकरण और गठबंधन की रणनीति भी निर्णायक भूमिका निभा रही है।
चुनावी इतिहास
2010 में बीजेपी के रामानंद राम ने 43,871 (37%) वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी, जबकि एलजेपी और सीपीआई क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। लेकिन 2015 में समीकरण पूरी तरह बदले और महागठबंधन की लहर में राजद प्रत्याशी उपेंद्र पासवान ने 72,632 (49.3%) वोट पाकर भाजपा को करारी शिकस्त दी। उस चुनाव में सीपीआई अपने परंपरागत आधार के बावजूद तीसरे स्थान पर खिसक गई थी।
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2020 के चुनावों ने इस सीट की राजनीति को और दिलचस्प बना दिया। सीपीआई ने अपने पुराने किले को फिर से मजबूत करते हुए सूर्यकांत पासवान के नेतृत्व में वापसी की। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार रामशंकर पासवान को बेहद करीबी मुकाबले में 777 वोटों से हराया। इस चुनाव में सूर्यकांत पासवान को 72,177 (44.14%) वोट मिले, जबकि भाजपा के रामशंकर पासवान को 71,400 (43.67%) वोट प्राप्त हुए। यह नतीजा बताता है कि बखरी की राजनीति अब त्रिकोणीय मुकाबले से निकलकर सीधे सीपीआई और भाजपा के बीच सिमटती जा रही है।
जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की दृष्टि से देखें तो यहां भूमिहार और मुस्लिम मतदाता निर्णायक माने जाते हैं। इसके अलावा रविदास समाज का भी महत्वपूर्ण प्रभाव है। यही वजह है कि हर दल अपनी रणनीति में इन समुदायों को साधने की कोशिश करता है। आंकड़े बताते हैं कि 1995 में यहां सबसे अधिक 64.9% मतदान हुआ था, जबकि पहली बार हुए चुनाव में 54.5% वोटिंग दर्ज की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार बखरी विधानसभा क्षेत्र की कुल आबादी 4,00,325 है, जिसमें से 90% लोग गांवों में रहते हैं। अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 19.26% और अनुसूचित जनजाति की आबादी 0.02% है।
बखरी विधानसभा का इतिहास यह साबित करता है कि यहां की राजनीति केवल किसी एक दल के स्थायी प्रभुत्व की गारंटी नहीं देती। 2010 से 2020 के बीच भाजपा, राजद और सीपीआई — तीनों ने अलग-अलग चुनावों में जीत दर्ज की है। ऐसे में आने वाले चुनावों में बखरी सीट पर मुकाबला और भी रोमांचक हो सकता है। सवाल यह है कि क्या सीपीआई अपनी पकड़ बनाए रखेगी या भाजपा और राजद की चुनौती उसे फिर से कमजोर कर देगी?






















