Banka Vidhansabha 2025: बिहार विधानसभा की अहम सीट 161- बांका विधानसभा हमेशा से राजनीतिक हलचलों का केंद्र रही है। झारखंड और बिहार की सीमा से सटी यह सीट 1951 से अस्तित्व में है और अब तक कई उतार-चढ़ाव देख चुकी है। शुरुआती दशकों में यहां कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन 1986 के बाद से कांग्रेस पूरी तरह हाशिये पर चली गई। इसके बाद भाजपा और राजद ने यहां बारी-बारी से कब्जा जमाया।
चुनावी इतिहास
इतिहास गवाह है कि इस सीट पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह भी विधायक रह चुके हैं। 1990 में भाजपा के राम नारायण मंडल ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली और तब से अब तक भाजपा के मजबूत गढ़ के रूप में यह सीट पहचानी जाती है। हालांकि बीच-बीच में राजद के जावेद इकबाल अंसारी ने भी भाजपा को कड़ी चुनौती दी और जीत दर्ज की।
Amarpur Vidhansabha 2025: बदलते समीकरणों की धरती, जहां BJP अब तक नहीं खोल पाई जीत का खाता
2015 के चुनाव में आरजेडी और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली थी, जिसमें भाजपा के राम नारायण मंडल ने महज 3 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। वहीं 2020 में तस्वीर और भी साफ रही, जब राम नारायण मंडल ने राजद के जावेद इकबाल अंसारी को 16,828 वोटों के अंतर से हराया। उस चुनाव में भाजपा को 69,762 वोट मिले जबकि राजद के खाते में 52,934 वोट आए।
जातीय समीकरण
अबकी बार बांका सीट पर मुकाबला और दिलचस्प होने वाला है क्योंकि यहां का जातीय समीकरण परिणाम तय करने में अहम भूमिका निभाएगा। बांका में यादव और मुस्लिम वोटरों की संख्या निर्णायक है, जबकि राजपूत, कोइरी और रविदास समाज भी संतुलन बनाने में अहम साबित होते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार बांका की जनसंख्या 3,66,489 है, जिसमें 87% आबादी ग्रामीण और 13% शहरी है। वहीं अनुसूचित जाति का अनुपात 11.26% और अनुसूचित जनजाति का अनुपात 2.01% है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा को अपने पुराने वोटबैंक और संगठनात्मक मजबूती का फायदा मिल सकता है, जबकि राजद यादव-मुस्लिम समीकरण पर दांव लगाएगी। कांग्रेस इस सीट पर लंबे समय से कमजोर रही है और उसका असर नगण्य है।
बांका विधानसभा का यह संघर्ष सिर्फ दो उम्मीदवारों के बीच नहीं बल्कि दो विचारधाराओं के टकराव के रूप में भी देखा जा रहा है। चुनावी मौसम जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, यहां की राजनीति और अधिक रोचक होती जा रही है।






















