Barbigha Vidhan Sabha Election 2025: शेखपुरा जिले की बरबीघा विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 170) बिहार की राजनीति में हमेशा से खास रही है। यह सीट नवादा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और लंबे समय तक कांग्रेस के प्रभाव में रही। 1951 में पहली बार अस्तित्व में आने के बाद से ही कांग्रेस ने यहां मजबूत पकड़ बनाई और शुरुआती वर्षों में लगातार जीत दर्ज की। कांग्रेस ने 15 विधानसभा चुनावों में से 10 बार जीत दर्ज कर यह साबित किया कि बरबीघा उसकी परंपरागत सीट है। लेकिन समय के साथ राजनीतिक परिस्थितियां बदलीं और इस सीट की सियासी तस्वीर पूरी तरह पलट गई।
चुनावी इतिहास
कांग्रेस ने 1951, 1962 और 1967 में लगातार जीत हासिल की और दशकों तक यहां अपनी पकड़ बनाए रखी। हालांकि, 90 के दशक में जब लालू प्रसाद यादव की राजनीति हावी हुई, तब भी कांग्रेस ने अपना असर बनाए रखा। लेकिन 2005 के बाद नीतीश कुमार की लहर और एनडीए की रणनीति ने कांग्रेस की जमीन खिसका दी। कांग्रेस 2005 और 2010 में यहां हार गई।
हालांकि 2015 में महागठबंधन की आंधी ने कांग्रेस को फिर से संजीवनी दी और पार्टी ने यहां शानदार वापसी की। उस चुनाव में राजो सिंह के पोते सुदर्शन कुमार को टिकट मिला और उन्होंने भारी अंतर से जीत दर्ज की। उन्हें 46,406 वोट मिले, जबकि बीएलएसपी के शिव कुमार को 30,689 वोट ही मिल सके। इस जीत से कांग्रेस को उम्मीद जगी कि वह यहां फिर से मजबूत होगी।
Sheikhpura Vidhansabha 2025: बदलते समीकरणों में कौन करेगा बाज़ी?
लेकिन 2020 में तस्वीर पूरी तरह बदल गई। कांग्रेस के सुदर्शन कुमार ने पाला बदलकर जेडीयू का दामन थाम लिया और पार्टी छोड़ दी। जेडीयू के उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी गजानंद शाही को हराकर सीट पर कब्जा कर लिया। हालांकि यह जीत मामूली अंतर से मिली। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, सुदर्शन कुमार को 39,878 वोट मिले जबकि गजानंद शाही को 39,765 वोट मिले। यानी जेडीयू ने सिर्फ 113 वोटों के अंतर से कांग्रेस से यह सीट छीन ली।
जातीय समीकरण
बरबीघा की राजनीति जातिगत समीकरणों पर टिकी हुई है। यहां भूमिहार समाज का सबसे अधिक दबदबा है, जो कुल जनसंख्या का लगभग 20 फीसदी है। यही वजह है कि किसी भी दल के लिए भूमिहार वोट बैंक निर्णायक साबित होता है। इसके अलावा कुर्मी, यादव और पासवान समुदाय भी जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
बरबीघा का राजनीतिक इतिहास बताता है कि यह सीट कांग्रेस की परंपरा से शुरू होकर अब जेडीयू के मजबूत किले में बदल चुकी है। आने वाले चुनाव में यहां मुकाबला बेहद रोचक होने की संभावना है, क्योंकि कांग्रेस इस सीट को फिर से हासिल करने की कोशिश करेगी जबकि जेडीयू अपने गढ़ को बचाने के लिए हर दांव चलेगी। जातीय समीकरण और उम्मीदवार की साख यहां के चुनावी परिणामों में सबसे अहम फैक्टर बने रहते हैं।






















