Belhar Vidhansabha Election 2025: बेलहर विधानसभा (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 163) बिहार की राजनीति में एक अहम पहचान रखती है। बांका जिले में स्थित यह सीट 1962 में अस्तित्व में आई और तब से लेकर अब तक कई बार राजनीतिक दलों की अदला-बदली देख चुकी है। शुरुआती दौर में कांग्रेस यहां मजबूत रही, लेकिन धीरे-धीरे उसका वर्चस्व खत्म होता चला गया और अब यह सीट जेडीयू बनाम आरजेडी की लड़ाई का गढ़ बन गई है।
चुनावी इतिहास
बेलहर का राजनीतिक इतिहास दिलचस्प रहा है। 1962 के पहले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार राघवेंद्र सिंह विजयी हुए, जबकि 1972 में शकुंतला देवी ने कांग्रेस की वापसी कराई। लेकिन 1977 की ‘कांग्रेस विरोधी लहर’ ने इस सीट पर भी पार्टी को झटका दिया। 1985 तक कांग्रेस ने संघर्ष करते हुए वापसी की, मगर इसके बाद पार्टी लगातार हाशिए पर जाती रही और बेलहर में उसका अध्याय लगभग समाप्त हो गया।
साल 2005 के बाद यहां जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का ग्राफ तेजी से बढ़ा। 2010 और 2015 के चुनाव में जेडीयू के गिरिधारी यादव ने शानदार जीत दर्ज की। 2010 में उन्होंने आरजेडी के रामदेव यादव को 7 हजार से अधिक वोटों से हराया। 2015 में भी उन्होंने बीजेपी के मनोज यादव को शिकस्त दी। बाद में वे 2019 में लोकसभा पहुंचे और सीट खाली हुई, जहां उपचुनाव में आरजेडी ने वापसी करते हुए रामदेव यादव को जीत दिलाई।
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हालांकि, 2020 का विधानसभा चुनाव जेडीयू के खाते में गया। इस बार जेडीयू के मनोज यादव ने आरजेडी के रामदेव यादव को 2473 मतों से हराकर सीट पर पार्टी का दबदबा कायम रखा। इससे साफ है कि बेलहर में जेडीयू और आरजेडी के बीच सीधी टक्कर है, जबकि कांग्रेस अब तस्वीर से लगभग बाहर हो चुकी है।
जातीय समीकरण
बेलहर विधानसभा का जातीय समीकरण इसे और पेचीदा बना देता है। यहां यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, जबकि मुस्लिम, राजपूत और रविदास समुदाय की भी मजबूत हिस्सेदारी है। यही वजह है कि बेलहर का चुनावी गणित ‘यादव फैक्टर’ के इर्द-गिर्द घूमता है। गैर-यादव प्रत्याशियों को यहां जीत दर्ज करने के लिए जातीय समीकरण से ऊपर उठकर खास रणनीति बनानी पड़ती है।
आगामी चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यादव वोटों का झुकाव किस ओर जाता है, क्योंकि बेलहर की सत्ता का रास्ता हमेशा इस फैक्टर से होकर गुजरता है।






















