Sandesh Vidhansabha 2025: भोजपुर जिले की संदेश विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या-192) बिहार की राजनीति में हमेशा से अहम मानी जाती रही है। 1957 में यहां पहली बार चुनाव हुए और तभी से यह सीट कई दलों के बीच सत्ता परिवर्तन का गवाह बन चुकी है। कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय जनसंघ से शुरू हुई यह राजनीतिक यात्रा समय-समय पर राजद, जदयू और वाम दलों के हाथों में भी रही। यही कारण है कि संदेश सीट को राजनीतिक दृष्टि से “अनुमान से परे” वाला इलाका माना जाता है।
चुनावी इतिहास
पिछले तीन चुनावों में इस सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने दो बार और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एक बार जीत दर्ज की है। 2015 में अरुण कुमार ने BJP के संजय सिंह को करारी शिकस्त दी थी, जबकि 2010 में संजय सिंह ने जीत दर्ज की थी। इससे पहले 2005 में RJD के विजेंद्र यादव और 2000 में भी उन्होंने ही बाजी मारी थी। भाकपा (माले) के रामेश्वर प्रसाद ने 1995 और फरवरी 2005 में यहां जीत हासिल कर वाम राजनीति को मजबूत उपस्थिति दिलाई थी।
सबसे हालिया 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद की किरण देवी ने जदयू उम्मीदवार विजेंद्र यादव को ऐतिहासिक 50,607 वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी। किरण देवी को कुल 79,599 वोट मिले, जबकि विजेंद्र यादव को 28,992 वोटों से संतोष करना पड़ा। लोजपा की श्वेता सिंह ने भी 28,500 वोट हासिल कर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया था।
जातीय समीकरण
संदेश विधानसभा का जातीय समीकरण बिहार की राजनीति का असली आईना है। यह सीट यादव बहुल मानी जाती है और यादव मतदाता यहां के चुनाव परिणाम में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यादवों के बाद राजपूत, रविदास, पासवान, कोइरी और ब्राह्मण मतदाता भी यहां चुनाव को प्रभावित करते हैं। कुल ढाई लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर करीब 1.30 लाख पुरुष और 1.10 लाख महिला वोटर हैं।
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यादव मतदाताओं की अधिकता राजद के लिए यहां हमेशा फायदेमंद रही है, लेकिन BJP और जदयू का संगठनात्मक नेटवर्क इस समीकरण को बार-बार चुनौती देता रहा है। वहीं लोजपा ने 2020 के चुनाव में अपने प्रदर्शन से यह साफ कर दिया कि वह भी इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में संदेश सीट फिर से सुर्खियों में रहने वाली है। यादव वोट बैंक पर RJD की मजबूत पकड़ है, लेकिन BJP इस बार रणनीतिक तरीके से गैर-यादव जातियों को साधने की कोशिश कर रही है। जदयू की कोशिश रहेगी कि वह पुराने चेहरों और अपने परंपरागत वोटरों के भरोसे मैदान में मजबूती से उतर सके। वहीं लोजपा अगर पिछली बार की तरह फिर से मजबूत उम्मीदवार उतारती है तो मुकाबला चतुष्कोणीय हो सकता है।