बिहार में पहला विधानसभा चुनाव 1951-52 (Bihar Election 1951) में लोकसभा चुनाव के साथ हुआ, जिसने राज्य में लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव रखी। इस चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और सत्ता की बागडोर संभाली। कुल 42.60% मतदान हुआ, जिसमें 95 लाख 48 हजार 835 मतों की गिनती की गई।
कांग्रेस को मिली सबसे ज्यादा सीटें, सोशलिस्ट पार्टी बनी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी
इस चुनाव में कांग्रेस को 42.16% वोट मिले और वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
• कांग्रेस ने 239 सीटों पर जीत दर्ज की।
• सोशलिस्ट पार्टी को 22.18% वोट मिले और वह 23 सीटों पर विजयी रही।
• कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) को 11.03% वोट मिले, हालांकि उसे कोई बड़ी सफलता नहीं मिली।
• निर्दलीयों ने भी 14 सीटें अपने नाम कीं।
पहले चुनाव में 11 राष्ट्रीय और 4 क्षेत्रीय दल थे मैदान में
1951 के चुनाव में कई राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया, जिनमें राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों तरह के दल शामिल थे।
राष्ट्रीय दलों में:
• कांग्रेस
• सोशलिस्ट पार्टी
• कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI)
• प्रजा पार्टी (1 सीट)
• रामराज्य परिषद (1 सीट)
क्षेत्रीय दलों में:
• झारखंड पार्टी (32 सीटें)
• छोटानागपुर व संथाल परगना जनता पार्टी (11 सीटें)
• लोक सेवक संघ (7 सीटें)
• ऑल इंडिया गण परिषद (1 सीट)
डबल मेंबरशिप सिस्टम: एक सीट से चुने जाते थे दो विधायक
पहले विधानसभा चुनाव में बिहार में 276 सीटों पर चुनाव हुआ। इनमें से 54 सीटें ऐसी थीं, जहां से दो विधायक चुने जाते थे। इस डबल मेंबरशिप प्रणाली को 1957 के चुनाव तक जारी रखा गया, जिसके बाद इसे समाप्त कर दिया गया और प्रत्येक सीट पर केवल एक विधायक चुना जाने लगा।
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चुनाव प्रक्रिया और मतदाता संख्या
• कुल मतदाता: 1,81,38,956
• एकल सदस्यता वाली सीटों के लिए मतदाता: 1,21,12,523
• डबल मेंबरशिप सीटों के लिए मतदाता: 60,26,433
• कुल पड़े वोट: 1,02,95,654
• मान्य मतों की संख्या: 95,42,835
चुनाव में उम्मीदवारों की संख्या
• कुल नामांकन पत्र दाखिल हुए: 2,377
• नामांकन पत्र रद्द किए गए: 153
• नामांकन वापस लेने वाले उम्मीदवार: 591
• अंतिम रूप से चुनाव में उतरे प्रत्याशी: 1,593
1951 का चुनाव बिहार में लोकतंत्र की पहली परीक्षा थी, जिसमें कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई। सोशलिस्ट पार्टी और झारखंड पार्टी जैसी क्षेत्रीय ताकतों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जो आगे चलकर बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली थीं। इस चुनाव ने राज्य की राजनीति को एक नई दिशा दी, जो आने वाले वर्षों में सत्ता के कई उतार-चढ़ाव का गवाह बनी।






















