1995 का बिहार विधानसभा चुनाव (1995 Bihar Election Analysis) कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। यह वह समय था जब न तो राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अस्तित्व में था और न ही जनता दल से अलग होकर जनता दल यूनाइटेड (JDU) बनी थी। हालांकि, 1994 में नीतीश कुमार ने लालू यादव से अलग होकर समता पार्टी का गठन कर लिया था। इस चुनाव में जनता दल ने लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में 264 सीटों पर चुनाव लड़ा और 167 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इस जीत के साथ ही लालू यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी स्थिति को और मजबूत किया।
दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 315 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन महज 41 सीटों पर जीत हासिल कर सकी। वहीं, कांग्रेस की हालत और भी खराब रही। उसने 320 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 29 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई। तब झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) भी बिहार से चुनाव लड़ती थी और उसने 63 में से 10 सीटें जीतीं। वहीं, नीतीश कुमार की समता पार्टी 310 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद सिर्फ 7 सीटें ही जीत पाई।
लालू यादव ने इस चुनाव में अपनी पार्टी को बड़ी जीत दिलाई और मुख्यमंत्री बने, लेकिन यह सफर ज्यादा लंबा नहीं चला। 1997 में चारा घोटाले में फंसने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया। इस फैसले की खूब आलोचना हुई, जिससे पार्टी में दरार भी पड़ गई। 1997 में ही लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की स्थापना की, जो अभी मुख्य विपक्षी दल है।
बिहार विधानसभा चुनाव 1995 राजनीति के एक अहम मोड़ पर था, जहां मंडल और कमंडल की राजनीति चरम पर थी। यही वह समय था जब लालू प्रसाद यादव अपनी पार्टी जनता दल से टूटकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) बना चुके थे। इस चुनाव में आरजेडी ने उम्मीद से कहीं ज्यादा सफलता पाई, लेकिन एक और पार्टी ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी थी। यह पार्टी थी बिहार पीपुल्स पार्टी (बिपीपा), जिसे राजपूत नेता आनंद मोहन ने शुरू किया था।
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आनंद मोहन, जो पहले बिहार में जनता दल के नेता थे, ने 1995 में बिपीपा बनाई और सीधा लालू यादव को चुनौती दी। उनका मुख्य आधार राजपूत और भूमिहार जातियां थीं, जिनका वोट बैंक वह एकजुट करने में कामयाब हो गए थे। इसके अलावा, उनकी पत्नी लवली आनंद ने 1994 में वैशाली लोकसभा सीट पर उपचुनाव जीतकर यह संदेश दिया कि लालू यादव को हराया जा सकता है। यह जीत राजपूत-भूमिहार गठजोड़ और कुर्मी-कोयरी के समर्थन से मिली थी।
आनंद मोहन ने अपने प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हेलिकॉप्टर से राज्यभर में घूमते हुए उन्होंने अपनी ताकत दिखाई। उनका जादू इस कदर था कि हर कोई मानने लगा था कि अगली सरकार उनकी ही होगी। लेकिन, उनकी उम्मीदों के बावजूद 1995 का चुनाव लालू यादव के लिए संजीवनी साबित हुआ।
बिहार विधानसभा की कुल 324 सीटों में से बिपीपा ने 259 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन परिणाम अप्रत्याशित रहा। बिपीपा को मात्र 3% वोट मिले और वे सिर्फ एक सीट पर जीत पाए। अररिया से बिपीपा के उम्मीदवार विजय मंडल ने जीत हासिल की, जबकि अन्य सभी सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार हार गए। बिपीपा के अधिकांश उम्मीदवार अपनी जमानत तक गंवा बैठे।






















