बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए महागठबंधन ने अपने चुनावी अभियान को धार देते हुए घोषणा पत्र (Bihar Election 2025 Manifesto) का पहला हिस्सा जारी कर दिया है। पटना के एक होटल में आयोजित इस कार्यक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव ने मिलकर “अति पिछड़ा न्याय संकल्प” नामक संकल्प पत्र पेश किया। इस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी और अति पिछड़ा वर्ग के 100 से अधिक नेता मौजूद रहे।

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक खत्म.. जानिए साढ़े चार घंटे चली मीटिंग में क्या हुआ
महागठबंधन के इस घोषणा पत्र में खासतौर पर अति पिछड़ा वर्ग के लिए सामाजिक और राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया है। इसमें वादा किया गया है कि एससी-एसटी की तर्ज पर अति पिछड़ा अत्याचार निवारण कानून बनाया जाएगा। साथ ही पंचायत और नगर निकायों में अति पिछड़ों के लिए आरक्षण 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत किया जाएगा।

मैनिफेस्टो में यह भी घोषणा की गई है कि आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा को आबादी के अनुपात में बढ़ाने का कानून विधानसभा से पास कर केंद्र को भेजा जाएगा और उसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की जाएगी। भर्ती प्रक्रिया में “नॉट फाउंड स्यूटेबल” यानी NFS को अवैध घोषित करने का भी वादा किया गया है।
महागठबंधन ने भूमिहीन परिवारों को भी राहत देने का ऐलान किया है। शहरी क्षेत्र में तीन डिसिमल और ग्रामीण क्षेत्र में पांच डिसिमल जमीन देने का वादा किया गया है। वहीं शिक्षा के क्षेत्र में 2010 के शिक्षा का अधिकार कानून के तहत प्राइवेट स्कूलों में आरक्षित सीटों का आधा हिस्सा ईबीसी, ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के बच्चों को देने का प्रस्ताव रखा गया है।
बिहार में कांग्रेस का पावर शो: पटना CWC बैठक से तीन चरणों के जनआंदोलन की हुंकार!
आर्थिक सशक्तिकरण के लिए महागठबंधन ने ठेकों और आपूर्ति के टेंडर में भी बड़ा कदम उठाने का वादा किया है। 25 करोड़ रुपये तक के सरकारी ठेकों और आपूर्ति में ईबीसी, ओबीसी, एससी और एसटी को 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया जाएगा। साथ ही राज्य के सभी निजी शिक्षण संस्थानों में भी आरक्षण लागू करने का संकल्प लिया गया है।
घोषणा पत्र में आरक्षण की पारदर्शिता और निगरानी के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त आरक्षण नियामक प्राधिकरण बनाने की भी बात कही गई है। इसके तहत जातियों की सूची में कोई भी बदलाव केवल विधानमंडल की मंजूरी से ही संभव होगा।






















