Maner Vidhansabha 2025: पटना जिले की मनेर विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 187) बिहार की राजनीति में हमेशा से अहम रही है। 1952 से अब तक यहां 16 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। शुरुआती दौर में कांग्रेस का यहां दबदबा था और लंबे समय तक यही पार्टी इस सीट की सियासत तय करती रही। लेकिन 1990 के बाद से कांग्रेस पूरी तरह हाशिये पर चली गई। पिछले तीन दशकों में कांग्रेस इस सीट पर अपनी मौजूदगी भी दर्ज नहीं करा पाई है। यही वजह है कि अब मनेर की राजनीति कांग्रेस से नहीं, बल्कि राजद और भाजपा जैसे दलों से ही संचालित हो रही है।
चुनावी इतिहास
मनेर में चुनावी समीकरण जातिगत आधार पर ही तय होते रहे हैं। यहां यादव वोटरों का दबदबा है और यही वजह है कि राष्ट्रीय जनता दल ने 2005 के बाद से इस सीट पर लगातार अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है। करीब तीन लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर लगभग एक लाख यादव वोटर हैं, जो हर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यादवों के अलावा सवर्ण और महादलित वोटरों की संख्या भी उल्लेखनीय है। यही कारण है कि हर दल अपनी रणनीति तैयार करते समय जातिगत गणित को प्राथमिकता देता है।
Fatuha Vidhansabha 2025: जातीय समीकरण और राजनीतिक गठजोड़ से तय होगी जीत की दिशा
राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो मनेर में कई बार नेताओं ने दल बदलकर किस्मत आजमाई है। श्रीकांत निराला इसका बड़ा उदाहरण हैं, जिन्होंने कांग्रेस, जनता दल और राजद—तीनों पार्टियों से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की। वहीं, भाई वीरेंद्र ने 2000 में समता पार्टी और 2010 से आरजेडी के टिकट पर अपनी सियासी पकड़ बनाई।
2015 के चुनाव में राजद और जदयू के गठबंधन ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी। इस चुनाव में राजद के भाई वीरेंद्र ने लगभग 90 हजार वोट पाकर भाजपा के श्रीकांत निराला को 24 हजार से अधिक मतों से हराया। जबकि 2020 में भी राजद ने अपनी पकड़ बनाए रखी। इस बार भाजपा-जदयू गठबंधन के बावजूद राजद उम्मीदवार भाई वीरेंद्र ने भाजपा के निखिल आनंद को 32,917 मतों के बड़े अंतर से हराकर सीट पर कब्जा जमाया। आंकड़े बताते हैं कि भाई वीरेंद्र को 94,223 वोट मिले जबकि निखिल आनंद को महज 61,306 वोट ही मिल पाए। वोट प्रतिशत की बात करें तो राजद को 47.44% और भाजपा को 30.86% वोट हासिल हुए।
जातीय समीकरण
मनेर विधानसभा का सामाजिक समीकरण स्पष्ट करता है कि यादव वोटरों की एकजुटता ने इस सीट पर आरजेडी को मजबूत किया है। दूसरी ओर, भाजपा और जदयू जैसी पार्टियां सवर्ण और अन्य वर्गों पर निर्भर करती हैं। लेकिन यादवों का बड़ा वोट बैंक चुनावी तस्वीर को एकतरफा बना देता है। यही कारण है कि मनेर को राजद का गढ़ माना जाता है और हर चुनाव से पहले यहां का जातीय समीकरण सुर्खियों में आ जाता है।






















