Raghopur Vidhansabha 2025: वैशाली जिले की सबसे चर्चित सीटों में शामिल राघोपुर विधानसभा (निर्वाचन संख्या 128) बिहार की राजनीति में हमेशा से वीआईपी सीट मानी जाती रही है। यह सीट हाजीपुर (एससी) संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है और अब तक 20 बार विधानसभा चुनाव और उपचुनाव का गवाह बन चुकी है। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के लंबे राजनीतिक सफर ने इस क्षेत्र को खास पहचान दिलाई, लेकिन बदलते हालात और चुनावी समीकरण लगातार इस सीट की दिशा तय कर रहे हैं।
चुनावी इतिहास
राघोपुर को लेकर कहा जाता है कि यह सीट सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र नहीं, बल्कि बिहार की सियासत का नब्ज़ थामने वाला इलाका है। कांग्रेस की पकड़ इस क्षेत्र से 1972 में छूटी और उसके बाद से कांग्रेस का खाता यहां नहीं खुला। 1995 और 2000 में खुद लालू यादव ने जीत दर्ज की, तो 2000 से लेकर 2010 तक राबड़ी देवी चुनावी मैदान में उतरीं। हालांकि 2010 में जेडीयू के सतीश कुमार ने राबड़ी को हराकर लालू परिवार के गढ़ में सेंध लगा दी थी।
Mahua Vidhansabha 2025: लालू परिवार का गढ़ या बदलेगा राजनीतिक गणित?
उसके बाद 2015 का चुनाव राघोपुर को फिर से राष्ट्रीय सुर्खियों में ले आया। महागठबंधन के बड़े चेहरे तेजस्वी यादव ने यहां से चुनाव लड़ा और बीजेपी के सतीश कुमार को करारी शिकस्त दी। तेजस्वी को 91,236 वोट मिले जबकि सतीश कुमार 68,503 वोटों पर सिमट गए। यही नहीं, 2020 के विधानसभा चुनाव ने तेजस्वी के राजनीतिक कद को और मज़बूत किया। उन्होंने सतीश कुमार को इस बार 38,174 वोटों के भारी अंतर से हराकर यह सीट अपने नाम कर ली।
दिलचस्प पहलू यह रहा कि 2020 के चुनाव में लोजपा उम्मीदवार राकेश रौशन ने लगभग 25 हजार वोट बटोरे, जिसका सीधा नुकसान बीजेपी को हुआ और फायदा तेजस्वी को। इससे साफ है कि राघोपुर की राजनीति केवल यादव बनाम गैर-यादव वोटों की नहीं, बल्कि तीसरे खिलाड़ी के आने-जाने से भी प्रभावित होती है।
जातीय समीकरण
अगर जातीय समीकरणों पर नज़र डालें तो राघोपुर विधानसभा में यादव समुदाय सबसे बड़ा वोट बैंक है। इसके अलावा रघुवंशी, मुस्लिम और अनुसूचित जाति के वोट भी यहां की राजनीति को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक अनुसूचित जाति मतदाताओं की संख्या लगभग 63,915 और मुस्लिम वोटर करीब 11,364 हैं। वहीं ग्रामीण मतदाता 3.44 लाख से अधिक हैं, जो साबित करते हैं कि गांव की राजनीति ही यहां की दिशा तय करती है।
आज राघोपुर केवल लालू परिवार की परंपरा का प्रतीक नहीं, बल्कि बिहार के भविष्य की सियासी रणनीतियों का केंद्र भी बन चुका है। सवाल यही है कि क्या आने वाले चुनावों में यह सीट लालू परिवार की पकड़ में बनी रहेगी या फिर कोई नया समीकरण इस गढ़ की तस्वीर बदल देगा।






















