Alauli Vidhansabha 2025: बिहार की राजनीति में अलौली विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 148) का एक खास महत्व रहा है। खगड़िया जिले में स्थित यह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट कभी लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) और पासवान परिवार की पहचान मानी जाती थी। यही वह सीट है जहां से स्वर्गीय रामविलास पासवान ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी और पहली बार विधायक बने थे। लंबे समय तक इस सीट पर उनके भाई पशुपति कुमार पारस का दबदबा रहा, लेकिन समय के साथ समीकरण बदले और आज यह सीट राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के कब्जे में है।
चुनावी इतिहास
2010 में इस सीट पर बड़ा उलटफेर देखने को मिला जब सात बार लगातार विधायक रहे पशुपति पारस को जेडीयू उम्मीदवार रामचंद्र सादा ने पराजित कर दिया। इसके बाद 2015 में एलजेपी की पकड़ और ढीली पड़ गई जब आरजेडी उम्मीदवार चंदन कुमार ने रिकॉर्ड 70,519 (51.6%) वोट हासिल कर पारस को शिकस्त दी। पारस को उस चुनाव में 46,049 (33.7%) वोट मिले थे। यह हार पासवान परिवार के लिए सबसे बड़ा झटका साबित हुई।
2020 का विधानसभा चुनाव भी अलौली के राजनीतिक इतिहास में अहम रहा। आरजेडी के रामवृक्ष सादा ने जेडीयू की साधना देवी को बेहद करीबी मुकाबले में 2,773 वोटों से हराकर सीट पर कब्जा बरकरार रखा। रामवृक्ष सादा को 47,183 (32.69%) वोट मिले जबकि साधना देवी को 44,410 (30.77%) वोट मिले। वहीं, एलजेपी के रामचंद्र सादा 26,386 (18.28%) वोट पाकर तीसरे स्थान पर सिमट गए।
जातीय समीकरण
अलौली की जातीय गणित पर नज़र डालें तो यहां रविदास, पासवान, कोइरी और कुर्मी वोटरों का वर्चस्व है। यही वजह रही कि पिछड़ी जातियों के समीकरण को साधकर पशुपति पारस लगातार सात बार विधायक बनने में सफल रहे। लेकिन बदलते समय में आरजेडी ने इसी समीकरण को अपने पक्ष में कर लिया और दो चुनावों से लगातार जीत दर्ज कर रही है।
जनगणना 2011 के मुताबिक, अलौली विधानसभा क्षेत्र की कुल आबादी 3,87,193 है। इनमें अनुसूचित जाति का अनुपात 25.39% और अनुसूचित जनजाति का 0.04% है। वहीं, 2019 की मतदाता सूची के अनुसार इस क्षेत्र में कुल 2,39,549 मतदाता दर्ज हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि एससी मतदाता इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अलौली विधानसभा में मुकाबला अब पारंपरिक नहीं रहा। एक ओर आरजेडी ने अपनी सामाजिक न्याय की राजनीति और समीकरण साधने की रणनीति से बढ़त बनाई है, तो दूसरी ओर जेडीयू और एलजेपी को यहां अपने खोए आधार को वापस पाना आसान नहीं दिख रहा। आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या आरजेडी अपनी पकड़ मजबूत रख पाएगी या फिर पासवान परिवार इस सीट पर वापसी कर पाएगा।






















