Chenari Vidhan Sabha 2025: चेनारी विधानसभा (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 207) बिहार की सासाराम लोकसभा सीट के छह हिस्सों में से एक है और रोहतास जिले की सियासत का अहम केंद्र मानी जाती है। इस सीट का राजनीतिक इतिहास बताता है कि यहां की जनता ने हमेशा विचारधारा को जातीय समीकरण से ऊपर रखा है। 1962 में अस्तित्व में आई यह विधानसभा सीट लंबे समय तक समाजवादी विचारधारा का गढ़ रही, जहां वाम और दक्षिणपंथी दलों की जड़ें कभी गहरी नहीं जम सकीं। लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। राजनीति का स्वरूप वैचारिक से जातीय संतुलन की ओर शिफ्ट होता दिख रहा है।
चुनावी इतिहास
कभी कांग्रेस का गढ़ रही चेनारी में आज जेडीयू, राजद और कांग्रेस तीनों पार्टियों की मौजूदगी मजबूत है। 2009 के उपचुनाव सहित अब तक हुए 16 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने छह बार जीत दर्ज की है, जबकि शेष 10 बार जनता दल, जेडीयू, आरजेडी, लोकदल, जनता पार्टी और रालोसपा जैसे समाजवादी दलों ने बाजी मारी है। इससे साफ झलकता है कि चेनारी की जनता ने हमेशा उन दलों को मौका दिया, जिन्होंने समाज के पिछड़े और दलित तबकों को साथ लेकर चलने की कोशिश की।
2020 के चुनाव में कांग्रेस के मुरारी प्रसाद गौतम ने जेडीयू के ललन पासवान को 18,003 वोटों से मात दी थी। लोजपा के चंद्रशेखर पासवान को भी 18,074 वोट मिले, जो जीत-हार के अंतर से महज 71 वोट अधिक थे। इससे स्पष्ट है कि चेनारी की राजनीति अब त्रिकोणीय मुकाबले की ओर बढ़ चुकी है, जहां हर वोट निर्णायक हो सकता है।इससे पहले 2015 में रालोसपा के ललन पासवान ने कांग्रेस के मंगल राम को 9,781 वोटों के अंतर से हराकर जीत हासिल की थी। वहीं 2010 में जेडीयू के श्याम बिहारी राम ने आरजेडी के ललन पासवान को 2,901 वोटों से शिकस्त दी थी। लगातार चुनावों के परिणाम बताते हैं कि मतदाताओं की निष्ठा किसी एक पार्टी के साथ स्थायी नहीं है; जनता मुद्दों और प्रत्याशियों के आधार पर फैसला करती है।
जातीय समीकरण
चेनारी में अब जातीय संतुलन सियासत की धुरी बन चुका है। यहां ब्राह्मण और कोइरी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, जबकि राजपूत, यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी खासा प्रभाव रखती है। यही कारण है कि कोई भी दल अब अकेले दम पर चुनावी सफलता नहीं पा सकता। दलों को अपने जातीय गठजोड़ मजबूत करने के साथ स्थानीय मुद्दों पर भी जनता को साधना होगा।
2025 के विधानसभा चुनाव में चेनारी सीट पर राजद, जेडीयू और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। कांग्रेस जहां अपने पिछले जीत के आत्मविश्वास के साथ मैदान में उतरेगी, वहीं जेडीयू ललन पासवान जैसे पुराने चेहरों के सहारे पुनः वापसी की कोशिश में होगी। राजद भी यहां संगठनात्मक मजबूती और जातीय समीकरण के बूते चुनौती पेश कर सकती है।






















