बिहार की सियासत में कांग्रेस अब बेहद रणनीतिक ढंग से आगे बढ़ रही है, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए। जातिगत जनगणना के मुद्दे पर मिली आंशिक सफलता के बाद पार्टी अब सामाजिक समीकरणों को साधने की दिशा में नए कदम उठा रही है। इसी कड़ी में कांग्रेस ने अब कुर्मी वोटबैंक को टारगेट किया है, जो राज्य में करीब 4 प्रतिशत मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है।
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इस रणनीति के तहत छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेश बघेल 19 मई को पटना पहुंचेंगे। उनके इस दौरे को पूरी तरह से कुर्मी समाज को साधने और संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने की दिशा में एक अहम प्रयास माना जा रहा है। खास बात यह है कि बघेल स्वयं भी कुर्मी समुदाय से आते हैं, जिससे उनके इस दौरे को अतिरिक्त राजनीतिक वजन और सांकेतिक महत्व मिल रहा है।
‘दौरे का पूरा शेड्यूल’
भूपेश बघेल अपने दौरे की शुरुआत पटेल छात्रावास में छात्रों से मुलाकात से करेंगे। माना जा रहा है कि इस दौरान वे युवाओं को कांग्रेस की विचारधारा और राहुल गांधी की नीतियों से जोड़ने की कोशिश करेंगे। इसके बाद पटना में कुर्मी समाज के प्रमुख प्रतिनिधियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक प्रस्तावित है। इस बैठक में वे कांग्रेस की रणनीति, राहुल गांधी के विचार और सामाजिक न्याय को लेकर पार्टी की सोच समाज के सामने रखेंगे।
‘संगठनात्मक मजबूती भी एजेंडे में’
अपने दौरे के अंतिम चरण में बघेल ‘सदाकत आश्रम’ में पार्टी नेताओं के साथ एक संगठनात्मक बैठक करेंगे, जहां आगामी चुनावी रणनीतियों और बूथ स्तर पर संगठन की मजबूती पर चर्चा की जाएगी। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में बिहार के सभी प्रमुख नेताओं की उपस्थिति अनिवार्य की गई है।
‘कुर्मी समाज की भूमिका और कांग्रेस की चुनौती’
बिहार की राजनीति में ‘कुर्मी समाज एक निर्णायक वोटबैंक’ माना जाता है, जिस पर अब तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मजबूत प्रभाव रहा है। कांग्रेस का यह प्रयास न केवल इस प्रभाव को चुनौती देने की कोशिश है, बल्कि यह भी संकेत है कि पार्टी अब पुराने जातीय समीकरणों को नए सिरे से परिभाषित करने की दिशा में सक्रिय हो चुकी है।
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भूपेश बघेल का यह दौरा इस मायने में भी अहम है कि वह राहुल गांधी के करीबी नेताओं में गिने जाते हैं और खुद भी एक सफल मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। ऐसे में उनका पटना दौरा पार्टी के भीतर और बाहर दोनों स्तरों पर एक मजबूत संदेश देने की तैयारी है। यदि कांग्रेस कुर्मी वोटबैंक को अपने पाले में लाने में सफल होती है, तो यह बिहार की राजनीति में एक नए समीकरण की शुरुआत हो सकती है।