संसद का मानसून सत्र लोकसभा और राज्यसभा को काले और सफेद रंग में बांट चुका है। मणिपुर की स्थिति पर अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस तो स्वीकृत हो चुका है। लेकिन सदन में विरोध-गतिरोध अब भी बरकरार है। विपक्षी सांसदों ने गुरुवार को काले लिबास पहनकर अपना विरोध जताया। तो दूसरी ओर सरकार को सबक सिखाने की कोशिश में दलों ने अविश्वास प्रस्ताव से लेकर केंद्र सरकार द्वारा लाए जा रहे अध्यादेशों के विरोध की रणनीति बना ली है। दिल्ली में ट्रांसफर पोस्टिंग पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश की परीक्षा शेष है। इसी के मद्देनजर जदयू ने व्हिप जारी कर राज्यसभा में अपने सांसदों पार्टी स्टैंड पर रहने का निर्देश दिया है। जदयू के इस स्टैंड ने राज्यसभा में उपसभापति हरिवंश निष्ठा और प्रतिष्ठा की जंग में एक बार फिर फंसते दिख रहे हैं।
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अध्यादेश के विरोध में जदयू
वैसे तो जिस अध्यादेश के विरोध के लिए जदयू ने अपने सांसदों को व्हिप जारी किया है, उसका जदयू के बेस बिहार से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन विपक्षी दलों को एकजुट करने वाली रथ के सारथी बने जदयू ने दिल्ली से जुड़े अध्यादेश के बहाने अपनी ताकत तौलने का मन बनाया है। लेकिन जदयू की यह कोशिश एक बार फिर उसके एक सांसद हरिवंश के मुश्किल ला सकती है। दरअसल, हरिवंश अभी राज्यसभा के उपसभापति हैं और जदयू के सिम्बल पर ही राज्यसभा पहुंचे हैं। लेकिन वे उपसभापति तब बने थे, जब जदयू और भाजपा दिल्ली से लेकर पटना तक साथ थे। अब दोनों कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक खिलाफ हैं, लेकिन हरिवंश अपने पद पर बने हुए हैं।
हरिवंश पहले कर चुके जदयू को दरकिनार
भले ही हरिवंश जदयू से राज्यसभा पहुंचे हों लेकिन नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर मौजूद रहकर उन्होंने जदयू को किनारे कर दिया था। उनके इस कदम की जदयू के कई नेताओं ने तीव्र आलोचना की। उन्हें गद्दार और बिका हुआ तक बता दिया। इतना सुनकर भी हरिवंश ने न कोई सफाई दी और न ही कोई विरोध जताया। साथ ही भाजपा ने भी तब कुछ हफ्ते पहले तक हटाने की कोई कार्रवाई नहीं की। तब हरिवंश की भाजपा से नजदीकियां बढ़ने के संकेत मिलने लगे। रणनीतिकार प्रशांत किशोर तो पहले से यह आरोप लगाते रहे हैं कि हरिवंश के जरिए नीतीश कुमार ने वापस भाजपा के साथ गठबंधन की राह खुली छोड़ रखी है। इस बीच इसी माह हरिवंश की बिहार के सीएम नीतीश कुमार से गुपचुप मुलाकात हुई।
भाजपा में ढूंढ़ेंगे प्रतिष्ठा या जदयू से जारी रहेगी निष्ठा?
नए संसद भवन के उद्घाटन में शामिल होना और उसके लगभग महीने भर बाद गुपचुप तरीके से नीतीश कुमार से मिलना, इन दोनों अलग अलग घटनाओं ने हरिवंश के अगले कदम को लेकर कन्फ्यूजन फैला दिया है। भाजपा से जदयू के अलगाव के बाद भी हरिवंश की कुर्सी बचे रहना भाजपा की ही कृपा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या हरिवंश उस कृपा की प्रतिष्ठा बचाएंगे या जदयू के लिए अपनी निष्ठा दिखाएंगे। क्योंकि अगर दिल्ली में ट्रांसफर पोस्टिंग पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश पर वोटिंग के दौरान वे बतौर उपसभापति आसन पर रहेंगे, तो उन्हें वोट करने की नौबत तब आएगी जब सरकार और विपक्ष के बीच टाई वाली स्थिति होगी। लेकिन अगर वोटिंग के दौरान सभापति जगदीप धनखड़ आसन पर रहते हैं तो हरिवंश के सामने पार्टी का स्टैंड मानने की बाध्यता होगी। नहीं मानने पर जदयू उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है।