Dumraon Vidhansabha 2025: डुमराव विधानसभा (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 201) बक्सर जिले की वह राजनीतिक धरती है, जहाँ सत्ता की कहानी हर चुनाव में नया मोड़ लेती रही है। 1951 में इस सीट की स्थापना के बाद से यहाँ 17 बार जनता ने अपने प्रतिनिधि चुने हैं। कभी कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट अब वैचारिक और सामाजिक समीकरणों की प्रयोगशाला बन चुकी है। डुमराव का राजनीतिक इतिहास बिहार की राजनीति का आईना कहा जा सकता है—जहाँ वामपंथ, समाजवाद और गठबंधन की राजनीति ने बारी-बारी से अपनी छाप छोड़ी है।
चुनावी इतिहास
1950 और 60 के दशक में डुमराव कांग्रेस के प्रभाव में था। उस दौर में जातीय गणित से ज्यादा कांग्रेस की राष्ट्रीय पकड़ प्रभावी थी। लेकिन 1970 के दशक में जैसे ही कांग्रेस का आधार कमजोर पड़ा, समाजवादी और वामपंथी दलों ने अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी। जनता पार्टी और बाद में जनता दल ने यहां अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। 1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव के सामाजिक न्याय के नारे ने यहां के यादव और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक को सक्रिय किया, जिसने डुमराव की राजनीति को नई दिशा दी।
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2005 के बाद नीतीश कुमार और भाजपा के गठबंधन ने बिहार की राजनीति में नई हवा दी, जिसका असर डुमराव पर भी पड़ा। 2010 और 2015 दोनों चुनावों में जेडीयू के दद्दन प्रसाद यादव ने जीत दर्ज की। खास बात यह रही कि 2015 में जेडीयू ने महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, जिससे अति पिछड़े और मुस्लिम वोट बैंक का समीकरण उनके पक्ष में गया।
लेकिन 2020 में डुमराव की जनता ने अप्रत्याशित फैसला दिया। सीपीआई(एमएल)(एल) के अजीत कुमार सिंह ने इस सीट पर कब्जा कर सभी पारंपरिक दलों को झटका दिया। अजीत कुशवाहा ने जेडीयू की अंजुम आरा को 24,415 मतों से हराया। यह नतीजा संकेत था कि मतदाता वैकल्पिक विचारधारा की ओर झुक रहे हैं।डुमराव में इस बार भी मुकाबला दिलचस्प रहेगा। भाकपा (माले) अपनी सीट बचाने में जुटी है, वहीं जेडीयू हर हाल में इसे फिर से कब्जाने के लिए रणनीति बना रही है। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी मैदान में उतरकर चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रही है।
जातीय समीकरण
अगर जातीय समीकरण की बात करें तो इस सीट पर लगभग 3.31 लाख मतदाता हैं, जिनमें 1.73 लाख पुरुष और 1.57 लाख महिला वोटर हैं। यादव, मुस्लिम और रविदास समुदाय निर्णायक भूमिका में हैं। अनुसूचित जाति के मतदाता लगभग 13.63%, अनुसूचित जनजाति 1.25% और मुस्लिम मतदाता करीब 7.1% हैं। चूंकि यह मुख्य रूप से ग्रामीण इलाका है (लगभग 87% ग्रामीण आबादी), इसलिए जातीय और स्थानीय समीकरण इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं।






















