Ekma Vidhansabha Election 2025: बिहार की राजनीति में सारण जिले की एकमा विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 113) हमेशा सुर्खियों में रहती है। इतिहास गवाह है कि यह सीट कभी अस्तित्व में रही, फिर खत्म हो गई और बाद में दोबारा राजनीतिक नक्शे पर लौटी। पहली बार 1951 में यहां चुनाव हुआ था और कांग्रेस के लक्ष्मी नारायण सिंह ने जीत दर्ज की थी। लेकिन उसके बाद यह सीट लंबे समय तक अस्तित्व से बाहर रही। 2008 के परिसीमन के बाद एकमा विधानसभा का पुनर्जन्म हुआ और 2010 में मनोरंजन सिंह ने आरजेडी प्रत्याशी कामेश्वर सिंह को हराकर यह सीट अपने नाम की।
चुनावी इतिहास
एकमा की राजनीति में सबसे बड़ा नाम मनोरंजन सिंह उर्फ धूमल सिंह का रहा है। धूमल सिंह का सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं रहा। उन्होंने 2000 में बनियापुर से बतौर निर्दलीय विधायक बन राजनीति में दस्तक दी और इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि 2005 में जेल के अंदर रहते हुए भी चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। फरवरी 2005 में उन्होंने एलजेपी का टिकट लिया और नवंबर 2005 में जेडीयू के उम्मीदवार बने। दोनों बार जनता ने उन्हें सिर आंखों पर बैठाया। 2015 में उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी कामेश्वर कुमार सिंह को करीब 8000 वोटों से हराया।
Maharajganj Vidhansabha: कभी JDU का गढ़, अब कांग्रेस की पकड़ – जानें किसके हाथ रहेगा 2025 का ताज
धूमल सिंह का नाम बिहार की राजनीति में एक बाहुबली छवि के साथ उभरकर सामने आया। कहा जाता है कि उनका असली नाम मनोरंजन सिंह है, लेकिन इलाके के लोग उन्हें “धूमल सिंह” कहकर ही पहचानते हैं। यही नाम उनकी ताकत और पहचान बन गया। हालांकि, 2020 के चुनाव ने समीकरण बदल दिए। जेडीयू की सीता देवी को राजद के श्रीकांत यादव ने 13,927 वोटों के अंतर से हराकर इस सीट पर कब्जा कर लिया। यह जीत केवल एक प्रत्याशी की हार नहीं थी, बल्कि यह संदेश भी था कि एकमा की राजनीति में जातीय समीकरण और युवाओं का वोटिंग पैटर्न किस तरह असर डालता है।
जातीय समीकरण
एकमा विधानसभा, महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और यहां ब्राह्मण, राजपूत और यादव समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इनकी संख्या मिलाकर कुल वोटरों का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा बनती है। लगभग 3.70 लाख की आबादी वाले इस क्षेत्र में 100 प्रतिशत ग्रामीण मतदाता हैं। इसमें 12.27 फीसदी अनुसूचित जाति और 3.67 फीसदी अनुसूचित जनजाति के लोग भी शामिल हैं। यही वजह है कि हर पार्टी इस सीट को साधने के लिए जातीय समीकरण को संतुलित करने में जुट जाती है।
आगामी विधानसभा चुनावों में एकमा की लड़ाई और भी दिलचस्प हो सकती है। एक ओर राजद अपनी पिछली जीत को दोहराने के प्रयास में है तो वहीं जेडीयू और बीजेपी फिर से अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति बना रहे हैं। बाहुबली राजनीति से लेकर जातीय समीकरण और युवाओं की भागीदारी तक, यह सीट बिहार की राजनीति का अहम चेहरा बनी हुई है।






















