Fatuha Vidhansabha 2025: पटना जिले की फतुहा विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 185) बिहार की उन चुनिंदा सीटों में से है जहां मतदाताओं की संख्या भले ही अपेक्षाकृत कम है, लेकिन इसका राजनीतिक महत्व काफी बड़ा है। 1951 से अस्तित्व में आने के बाद इस सीट का इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। शुरुआती दशकों में कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन 1969 के बाद कांग्रेस का ग्राफ यहां से लगभग खत्म हो गया और पिछले दो दशकों से यह सीट राजद और जदयू के बीच ही घूमती रही है। खास बात यह है कि अब तक BJP इस सीट पर जीत का खाता नहीं खोल पाई है, जबकि पटना जिले की अन्य सीटों पर उसका प्रभाव रहा है।
चुनावी इतिहास
फतुहा की राजनीति पर नजर डालें तो यहां राजद का वर्चस्व लगातार मजबूत होता दिखता है। 2010 से लगातार राजद के रामानंद यादव ने अपनी पकड़ बनाए रखी है। 2009 में जदयू के अरुण मांझी ने उपचुनाव जीतकर नई कहानी लिखी थी और 2005 में भी जदयू के उम्मीदवार सरयू पासवान विजयी रहे थे। लेकिन 2015 और 2020 में तस्वीर पूरी तरह बदल गई और राजद ने मजबूती से वापसी की। 2020 के चुनाव में रामानंद यादव ने भाजपा प्रत्याशी सत्येंद्र सिंह को 19,370 वोटों के बड़े अंतर से हराकर अपना दबदबा और पुख्ता कर लिया।
जातीय समीकरण
हालांकि फतुहा औद्योगिक क्षेत्र के तौर पर विकसित है, लेकिन यहां की चुनावी राजनीति पर जातीय समीकरण का सीधा असर दिखता है। इस क्षेत्र में कुर्मी और यादव मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यादव मतदाताओं की बड़ी संख्या लगातार राजद को फायदा देती रही है, वहीं कुर्मी समाज का वोट बैंक जदयू की मजबूती का आधार रहा है। यही कारण है कि यहां का हर चुनाव जातीय गणित और गठबंधन की राजनीति पर टिका होता है।
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वर्तमान में इस सीट पर कुल 2.65 लाख मतदाता दर्ज हैं, जिनमें से पुरुष वोटर लगभग 1.38 लाख (52.04%) और महिला वोटर 1.26 लाख (47.69%) हैं। महिला मतदाताओं की सक्रिय भागीदारी यहां की राजनीति में नया समीकरण बना सकती है।
आने वाले चुनाव में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या भाजपा पहली बार इस सीट पर जीत का स्वाद चखेगी, या फिर राजद अपना किला बरकरार रखेगी। वहीं, जदयू भी इस सीट को अपने प्रभाव क्षेत्र में दोबारा लाने की कोशिश करेगी। ऐसे में फतुहा विधानसभा सीट का मुकाबला बिहार की राजनीति के लिए अहम संकेत देने वाला साबित होगा।






















