विभावि के असिस्टेंट प्रोफेसर समेत रांची के रहने वाले चार दोस्तों ने दोस्ती की नई मिसाल पेश की है। चारों ने अपने प्रोफेसर साथी डॉ. संतोष कुमार पांडेय की याद में 1345 पन्ने की स्मृतिग्रंथ ‘शाश्वती’ तैयार किया है। इसे तैयार करने में दो साल का समय लगा है। वाराणसी के चौखंभा सुरभारती ने इसे प्रकाशित किया है। इसमें वेद -पुरान, साहित्य, साहित्य शास्त्र, व्याकरण, दर्शन, ज्योतिष, भारतीय संस्कृति आदि विविध विषयों पर शोध आलेख हैं। इस स्मृति ग्रंथ में पूर्व राज्यपाल रमेश बैस, जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय संस्कृत विवि प्रो श्री निवास वरखेड़ी, लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विवि के कुलपति मुरली मनोहर पाठक समेत 13 गण्यमान्य के संदेश हैं। इस स्मृति ग्रंथ में करीब 185 लेखकों के शोध आलेख हैं। 28 लेखकों ने सिर्फ डॉ. संतोष कुमार पांडेय पर संस्मरण लिखे हैं। इसका मूल्य 4995 रुपये है। स्मृतिग्रंथ के प्रधान संपादक विनोबा भावे विवि अंतर्गत रांची स्थित राजकीय संस्कृत कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शैलेश कुमार मिश्र हैं। प्रबंध संपादक रांची विश्वविद्यालय में इतिहास के सहायक प्राध्यापक कंजीव लोचन और झारखंड सरकार के शिक्षक डॉ. अवधेश कुमार पांडेय हैं। वहीं संपादक डॉ. श्यामा प्रसाद और विवि के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ धनंजय वासुदेव द्विवेदी हैं। डॉ धनंजय और डॉ संतोष पांडेय बचपन के मित्र रहे हैं। बाकी अन्य लोगों की नौकरी में आने के बाद अन्ययता बढ़ी। स्मृतिग्रंथ के लेखकों में से एक डॉ शत्रुघ्न पांडेय कहते हैं कि वास्तव में मित्र की स्मृति को संजोने के लिए अदभुत कृति है।
कौन थे डॉ. संतोष कुमार पांडेय
डॉ. संतोष कुमार पांडेय का जन्म बिहार के नालंदा के श्रीनगर गांव में उनकी ननिहाल में हुआ था। उनका पैतृक घर गया के खिजर सराय प्रखंड के छोटिया गांव में था। रांची में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर थे। वह रांची के संस्कृत के प्रोफेसर डॉ. रामाशीष पांडेय और बच्ची देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे। 28 दिसंबर 2019 को रांची स्टेशन अपने पिता को छोड़ने के लिए गए थे। रात में ट्रेन में पिता को बिठाकर उतर रहे थे, इसी क्रम में नीचे गिर पड़े और ट्रेन से उनका पैर कट गया, अत्यधिक खून बहजाने से उनकी जान चली गयी थी। व्यवहार कुशल और लोगों के अजीज डॉ संतोष पांडेय के निधन से उनके मित्रों को घोर निराशा हुई। इसके बाद मित्रों ने एक स्मृति ग्रंथ निकालने का निर्णय लिया। लगभग दो साल से अधिक समय की मेहनत के बाद यह स्मृतिग्रंथ तैयार हो गया। डॉ संतोष कुमार पांडेय का असमय चला जाना अपूर्णीय क्षति है। उनके कृतित्व और व्यक्तित्व को जिंदा और शाश्वत रखने के लिए ‘शाश्वती’ स्मृति ग्रंथ चार साथियों के प्रयास से प्रकाशित हुआ। इसमें प्रकाशन समिति के सदस्यों का भी सहयोग मिला।