Harnaut Vidhan Sabha 2025: बिहार की राजनीति में हरनौत विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 177) का अपना अलग महत्व है। नालंदा जिले की यह सीट पूरी तरह टाल क्षेत्र में आती है, जो दलहन और तिलहन की खेती के लिए मशहूर है। यही वह जमीन है जहां से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। हरनौत विधानसभा क्षेत्र का गठन 1977 में हुआ था और इसी के साथ इस क्षेत्र का राजनीतिक महत्व बढ़ गया।
चुनावी इतिहास
शुरुआती चुनावी इतिहास की बात करें तो 1977 में हुए पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार भोला प्रसाद ने नीतीश कुमार को शिकस्त देकर इतिहास रच दिया था। हालांकि इसके बाद नीतीश कुमार ने इस सीट से लगातार संघर्ष किया और 1985 व 1995 में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक कद को मजबूत किया। यही कारण है कि हरनौत को नीतीश कुमार की कर्मभूमि और जेडीयू का गढ़ माना जाता है।
Hilsa Vidhansabha 2025: नालंदा की अहम सीट पर यादव-कुर्मी समीकरण से तय होगी जीत
पिछले दो दशकों से हरनौत सीट पर जेडीयू का लगातार दबदबा रहा है। 2005 से अब तक हुए सभी विधानसभा चुनावों में जेडीयू ने जीत हासिल की है। 2005 में सुनील कुमार ने लगातार जीत दर्ज की, 2010 और 2015 में हरिनारायण सिंह ने पार्टी को जीत दिलाई। वहीं 2020 के चुनाव में भी जेडीयू प्रत्याशी हरिनारायण सिंह ने लोक जनशक्ति पार्टी की ममता देवी को 27,241 वोटों के बड़े अंतर से पराजित किया। कांग्रेस उम्मीदवार कुंदन कुमार तीसरे स्थान पर रहे। यह नतीजा साफ करता है कि जेडीयू इस क्षेत्र में गहरी पैठ बनाए हुए है।
जातीय समीकरण
हरनौत के जातीय समीकरण भी राजनीतिक दलों के लिए चुनौती और अवसर दोनों हैं। यहां यादव, पासवान और कुर्मी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। भूमिहार, राजपूत और रविदास समुदाय की संख्या भी अच्छी-खासी है। 2011 की जनगणना के अनुसार, हरनौत विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या 4.22 लाख है, जिसमें अनुसूचित जाति का प्रतिशत 24.15 और अनुसूचित जनजाति का 0.06 है। ऐसे में कोई भी दल चुनावी रणनीति बनाते समय इन जातीय समीकरणों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।
विश्लेषकों का मानना है कि हरनौत विधानसभा सिर्फ एक सीट नहीं बल्कि बिहार की राजनीति का वह चेहरा है जिसने नीतीश कुमार जैसे नेता को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। 2025 के विधानसभा चुनाव में भी यह सीट सुर्खियों में रहेगी क्योंकि यहां की सियासी लड़ाई केवल उम्मीदवारों के बीच नहीं बल्कि राजनीतिक दलों की साख की परीक्षा भी होगी। जेडीयू इस किले को बचाने में पूरी ताकत झोंक देगी, जबकि विपक्ष इसे भेदने की कोशिश करेगा।






















