Hasanpur Vidhan Sabha 2025: समस्तीपुर जिले की हसनपुर विधानसभा सीट (संख्या 140) बिहार की उन अहम सीटों में गिनी जाती है, जहां का राजनीतिक इतिहास हमेशा से समाजवादी विचारधारा से जुड़ा रहा है। इस सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस को हाशिए पर रहना पड़ा और केवल 1985 में उसे जीत का स्वाद चखने का मौका मिला। 1967 से लेकर अब तक संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल, जदयू और राजद यहां की सियासत में बारी-बारी से अपना प्रभाव दिखाते रहे हैं।
चुनावी इतिहास
हसनपुर सीट खगड़िया लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और यहां की जातीय समीकरण चुनावी परिणाम तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यादव बाहुल्य इस सीट पर पासवान और रविदास वोटरों की संख्या भी काफी है, जो हर बार समीकरण को अलग दिशा में मोड़ते हैं। यही कारण है कि राजनीतिक दल इस सीट को कभी हल्के में नहीं लेते।
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2010 में जदयू के राज कुमार राय ने 36,767 (31.5%) वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। तब आरजेडी के सुनील कुमार पुष्पम को 33,476 (28.7%) वोट मिले थे और उन्हें दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था। 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू और राजद गठबंधन ने साथ मिलकर लड़ाई लड़ी और राज कुमार राय लगातार दूसरी बार विधायक बने। उन्होंने आरएलएसपी के विनोद चौधरी को 29,600 वोटों से मात दी थी।
फरवरी 2005 और अक्टूबर 2005 में यहां की जनता ने आरजेडी को चुना और सुनील कुमार पुष्पम को जीत दिलाई। लेकिन 2020 का चुनाव हसनपुर के इतिहास में सबसे चर्चित साबित हुआ। लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव मैदान में उतरे और उन्होंने जदयू प्रत्याशी राज कुमार राय को 21,139 वोटों से हराकर सीट पर कब्जा जमाया। तेज प्रताप यादव ने कुल 80,991 (47.27%) वोट हासिल किए, जबकि जदयू प्रत्याशी को 59,852 (34.93%) वोट मिले।
जातीय समीकरण
हसनपुर विधानसभा में अब तक हुए चुनावों में सबसे अधिक 65.6% मतदान 1990 में हुआ था। 2011 की जनगणना के अनुसार, इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या 4,32,865 है। इसमें अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 17.55% और अनुसूचित जनजाति की महज 0.01% है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि यहां की राजनीति यादव और दलित वोटरों पर आधारित है, और यही समीकरण हर बार राजनीतिक पार्टियों को रणनीति बनाने के लिए मजबूर करता है।
2025 का चुनावी समर नजदीक है और सभी दल अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में जुटे हैं। तेज प्रताप यादव की लोकप्रियता, जदयू की रणनीति और पासवान-रविदास वोटरों का झुकाव इस बार भी मुकाबले को दिलचस्प बनाने वाला है। अब देखना यह होगा कि क्या राजद अपनी पकड़ बरकरार रख पाती है या जदयू यहां से अपनी जमीन वापस हासिल करने में कामयाब होती है।






















