दरभंगा जिले की हायाघाट विधानसभा सीट Hayaghat Vidhansabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 84) बिहार की राजनीति में हमेशा से चर्चित रही है। इस सीट पर सत्ता का सफर अक्सर उतार-चढ़ाव भरा रहा है, जहां कभी कांग्रेस और जनता दल का दबदबा रहा तो कभी राजद और जदयू ने अपनी पकड़ मजबूत की। वहीं, हाल के वर्षों में भाजपा ने इस सीट पर अपनी राजनीतिक जड़ें जमाई हैं और फिलहाल उसका पलड़ा भारी दिखाई देता है।
चुनावी इतिहास
अगर इतिहास पर नजर डालें तो कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री बलेश्वर राम ने 1967, 1969 और 1972 में लगातार तीन बार इस सीट पर जीत दर्ज कर अपनी मजबूत पकड़ दिखाई थी। इसके बाद 1985 और 2000 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सीपीआई (माले) से जुड़े उमाधर प्रसाद सिंह ने जीत हासिल कर राजनीतिक समीकरणों को बदला। 1990 और 1995 में जनता दल और फिर राजद के टिकट पर हरिनंदन यादव और कफील अहमद ने जीत दर्ज की। 2005 के बाद अमरनाथ गामी का उदय हुआ, जिन्होंने जदयू और भाजपा के सहारे 2010 और 2015 में लगातार जीत दर्ज कराई। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रामचंद्र प्रसाद साह ने आरजेडी के भोला यादव को 10,252 वोटों के अंतर से हराकर सीट पर भगवा झंडा फहराया।
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2020 के नतीजों ने यह साफ कर दिया कि हायाघाट सीट पर भाजपा ने मजबूत जमीनी नेटवर्क तैयार कर लिया है। रामचंद्र प्रसाद को 67,030 वोट मिले, जो कुल मतों का 46.86% था। वहीं, आरजेडी उम्मीदवार भोला यादव को 56,778 वोट यानी 39.69% मत मिले। तीसरे स्थान पर जन अधिकार पार्टी के अब्दुस सलाम खान रहे जिन्हें 4,898 वोट मिले।
जातीय समीकरण
हायाघाट विधानसभा की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत यहां का जातीय समीकरण है। इस क्षेत्र में लगभग 2,19,644 मतदाता हैं, जिनमें 1,16,241 पुरुष और 1,03,396 महिला वोटर शामिल हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 40% है, जो किसी भी उम्मीदवार के लिए निर्णायक साबित हो सकती है। यादव लगभग 25% हैं, वहीं ब्राह्मण मतदाताओं का अनुपात 15% के आसपास है। पासवान, कुर्मी, कोइरी और मल्लाह समुदाय मिलकर करीब 20% वोटर आधार बनाते हैं। यही समीकरण यहां हर चुनाव का परिणाम तय करते हैं।
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हायाघाट विधानसभा में मुकाबला हमेशा दिलचस्प रहा है। भाजपा अपने विकास एजेंडे और केंद्र सरकार की योजनाओं पर भरोसा जताते हुए इस सीट को दोबारा जीतने का दावा कर रही है। वहीं, राजद की निगाह मुस्लिम और यादव समीकरण पर टिकी है, जो उनके पारंपरिक वोट बैंक रहे हैं। जदयू के लिए यह सीट कभी सुरक्षित मानी जाती थी, लेकिन भाजपा के साथ गठबंधन और बाद में समीकरण बदलने के कारण उसकी पकड़ कमजोर हुई है। कांग्रेस और वामदलों के लिए यह सीट अब केवल अस्तित्व की लड़ाई बनकर रह गई है।
2025 के विधानसभा चुनाव से पहले हायाघाट सीट पर सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी है। यहां का वोटर जातीय समीकरण और उम्मीदवार की छवि के साथ-साथ विकास के मुद्दों को भी महत्व देता है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस बार हायाघाट का जनादेश किस पार्टी को सत्ता का स्वाद चखाता है।






















