उत्तरप्रदेश का माफिया डॉन अतीक अहमद सूरत की जेल से प्रयागराज लाया जा चुका है। यहां उस पर फैसला होना उस उमेश पाल के अपहरण मामले में, जिसकी ह’त्या 24 फरवरी 2023 को हो चुकी है। अपहरण का आरोप भी अतीक गैंग पर था। और पिछले दिनों हुई ह’त्या का आरोप भी अतीक गैंग पर ही है। अतीक अहमद और उसके गैंग के आपराधिक ‘अति’ का पूरा हिसाब कब होगा, यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन मंगलवार को उमेश पाल के अपहरण मामले में फैसला आ सकता है।
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गुनाहों की लंबी लिस्ट
डॉन अतीक अहमद के गुनाहों की लिस्ट लम्बी है। दर्जनों मामले दर्ज हैं। मामलों की संख्या शतक के पार है। लेकिन उसके आपराधिक रिकॉर्ड का कोई असर उसके राजनीतिक इतिहास पर नहीं रहा है। अतीक माफिया, गैंगस्टर, हिस्ट्रीशीटर, बाहुबली, दबंग और आतंक का दूसरा नाम है। लेकिन साथ ही पांच बार विधानसभा चुनाव और एक बार सांसद रह चुका नेता भी। अतीक उसी फूलपुर लोकसभा सीट पर सांसद रहा था, जहां से कभी पंडित जवाहर लाल नेहरु चुनाव लड़ चुके हैं।
बालिग होते ही पहली FIR
अतीक अहमद के गुनाहों की फेहरिस्त उसी साल बननी शुरू हो गई, जब वो बालिग हुआ। 1983 में 18 साल की उम्र में अतीक पर पहली FIR हुई। इसके बाद तो जैसे अतीक के कदम रुके ही नहीं। उसके आपराधिक गुनाहों की लिस्ट लंबी बनती गई। लेकिन अतीक ने अपने अपराधों को छुपाने के लिए राजनीतिक कुर्ता भी पहन लिया और 1989 में ही पहली बार विधायक बन गया। वह सीट इलाहाबाद वेस्ट की थी। इसके बाद उसी सीट से 1991, 1993, 1996 और 2002 में अतीक लगातार विधायक चुना जाता रहा। 2004 में उसने राजनीतिक प्रमोशन भी पा लिया और फूलपुर सीट से सांसद बन गया।
विधायक की ह’त्या के बाद उलटी गिनती
अपराध और राजनीतिक में एक साथ आगे बढ़ते हुए अतीक के अपराधों की अति इतनी हो गई, कि उसे अपे आगे किसी को समझता ही नहीं था। जिस विधानसभा सीट को छोड़कर अतीक सांसद बना, वहां से उसने अपने भाई अशरफ अहमद को चुनाव लड़ा दिया। लेकिन जिता नहीं सका। जीत मिली बसपा के राजू पाल को। लेकिन 2005 में 25 जनवरी को राजू पाल की ह’त्या हो गई। इस ह’त्या के बाद हुए उपचुनाव में अतीक का भाई तो विधायक बन गया लेकिन अतीक के राजनीतिक कॅरियर की उलटी गिनती शुरू हो गई। 2009 के बाद अतीक कोई चुनाव जीत नहीं सका है।
जब्त हो जाती है अतीक की जमानत
पांच बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके अतीक अहमद के राजनीतिक कॅरियर की नैया डूब् चुक है। अपराधों में तो उसपर नए मामले दर्ज होते रहे। लेकिन राजनीतिक जीत उससे छिटकती गई। 2009 के लोकसभा चुनाव में उसने प्रतापगढ़ से अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ा तो 2014 में श्रावस्ती सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर। 2018 में फूलपुर सीट के उपचुनाव में और 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर वाराणसी सीट से पीएम मोदी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत किसी में नसीब नहीं हुई। श्रावस्ती को छोड़ दें तो लोकसभा के बाकी तीनों चुनावों में तो उसकी जमानत तक जब्त हो गई।