नई दिल्ली। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को देश में आर्थिक उदारीकरण और सुधारों का जनक माना जाता है। 1991 में वित्त मंत्री के रूप में उनके ऐतिहासिक कदमों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से उबारकर एक नई दिशा दी। यही नहीं, उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल (2004-2014) में भारत की अर्थव्यवस्था ने तेज गति से विकास किया, जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वर्णकाल माना जाता है।
1991: भारत में आर्थिक सुधारों का आरंभ
जब डॉ. मनमोहन सिंह ने 1991 में वित्त मंत्री का पद संभाला, उस समय देश की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही थी।
- भारत को अपने खर्चे चलाने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा था।
- उन्होंने आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की, जिसमें लाइसेंस राज का खात्मा, विदेशी निवेश को प्रोत्साहन, रुपये का अवमूल्यन और टैक्स सुधार शामिल थे।
- इन कदमों से भारतीय अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा का संचार हुआ और आर्थिक विकास की गति तेज हो गई।
प्रधानमंत्री कार्यकाल: आर्थिक विकास का स्वर्ण युग
2004 में प्रधानमंत्री बनने के बाद, डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के साथ मिलकर आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया।
- उनके कार्यकाल में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 8-9% तक पहुंच गई, जो 2007 में 9% तक का ऐतिहासिक स्तर छू गई।
- उनकी सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (NREGA) शुरू की, जिसने ग्रामीण भारत में रोजगार और गरीबी उन्मूलन में बड़ी भूमिका निभाई।
- 2005 में वैट (VAT) व्यवस्था लागू की गई, जिससे जटिल टैक्स प्रणाली में सुधार हुआ।
- स्पेशल इकोनॉमिक जोन (SEZ) नीति के तहत औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिला।
एक विद्वान नेता का सफर
डॉ. मनमोहन सिंह का आर्थिक और प्रशासनिक करियर बेहद समृद्ध रहा।
- उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की।
- भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर (1982-1985) और योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- 1976 से 1980 तक भारतीय रिजर्व बैंक के डायरेक्टर और 1985-1987 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के चेयरमैन भी रहे।
सम्मान और पुरस्कार
डॉ. सिंह को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले:
- पद्म विभूषण
- इंडियन साइंस कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी अवॉर्ड
- एशिया मनी और यूरो मनी अवॉर्ड वित्त मंत्री के रूप में।