पूर्णिया जिले की Kasba Vidhansabha कसबा विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या-58) बिहार की उन अहम सीटों में से है, जहां हर चुनाव में राष्ट्रीय दलों की सीधी टक्कर देखने को मिलती है। इस सीट पर अब तक 13 बार चुनाव हुए हैं, जिनमें कांग्रेस ने 8 बार जीत हासिल की है, जबकि बीजेपी 3 बार सफल रही है। समाजवादी पार्टी और जनता दल ने एक-एक बार यहां से जीत दर्ज की है।
राजनीतिक इतिहास
कसबा सीट का राजनीतिक इतिहास गवाह है कि यहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही मुख्य संघर्ष होता रहा है। 1995 में इस सीट पर पहली बार बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, जब प्रदीप कुमार दास ने जनता दल के दिग्गज नेता शिवचरण मेहता को हराया। इसके बाद 1995, 2000 और 2005 में लगातार प्रदीप कुमार दास इस सीट से विधायक बने और बीजेपी का दबदबा कायम रखा।
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हालांकि, 2010 के बाद से कांग्रेस ने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत की है। 2015 और 2020 दोनों चुनावों में कांग्रेस के मोहम्मद अफाक आलम ने बीजेपी और एनडीए को शिकस्त दी। 2020 के चुनाव में अफाक आलम ने एलजेपी के प्रत्याशी प्रदीप कुमार दास को 17,278 वोटों के बड़े अंतर से हराकर लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। अफाक आलम को 77,410 वोट मिले थे, जबकि प्रदीप कुमार दास को 60,132 वोटों से संतोष करना पड़ा। ‘हम’ पार्टी के राजेंद्र यादव 23,716 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे।
जातीय समीकरण
कसबा विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण चुनावी नतीजों को सीधे प्रभावित करते हैं। यहां वैश्य मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है, जबकि यादव और मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। परंपरागत रूप से वैश्य मतदाता एनडीए के पक्ष में मतदान करते हैं, वहीं यादव और मुस्लिम मतदाता महागठबंधन की जीत सुनिश्चित करते हैं। इस सीट पर मुस्लिम वोटरों की संख्या इतनी अधिक है कि वे परिणाम तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा कोइरी, रविदास और पासवान समुदाय के मतदाता भी संतुलन साधने का काम करते हैं।
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करीब 2,64,000 मतदाताओं वाली इस सीट पर पुरुष वोटरों की संख्या लगभग 52% और महिला वोटरों की संख्या करीब 48% है। ऐसे में महिलाओं की भागीदारी भी चुनावी गणित में नई दिशा दे सकती है।
2025 में किसका पलड़ा भारी?
कसबा विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव फिर से कांग्रेस और बीजेपी के बीच दिलचस्प मुकाबला बनने जा रहा है। कांग्रेस जहां लगातार जीत की हैट्रिक लगाने की कोशिश करेगी, वहीं बीजेपी अपने पुराने गढ़ को फिर से हासिल करने के लिए रणनीति बना रही है। जातीय समीकरण और मुस्लिम-यादव वोट बैंक जहां कांग्रेस के पक्ष में जाते दिखते हैं, वहीं वैश्य मतदाताओं की मजबूती बीजेपी को बढ़त दिलाने की कोशिश करेगी।
इस बार का चुनाव सिर्फ स्थानीय मुद्दों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि राज्य और केंद्र की राजनीति का भी असर कसबा सीट पर साफ देखने को मिलेगा। ऐसे में 2025 का चुनाव कसबा विधानसभा की राजनीतिक तस्वीर को बदलने वाला साबित हो सकता है।






















