दरभंगा जिले की केवटी विधानसभा सीट Keoti Vidhansabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 86) बिहार की राजनीति में हमेशा से अहम मानी जाती रही है। इस सीट का चुनावी इतिहास बताता है कि यहां पर सत्ता परिवर्तन अक्सर तेज मुकाबले के बाद होता है। कभी गुलाम सरवर के नाम से मशहूर रही यह सीट 2005 के बाद बीजेपी और आरजेडी के बीच लगातार टकराव का गवाह बनती रही है।
चुनावी इतिहास
1990 और 1995 में जनता दल और फिर RJD के टिकट पर गुलाम सरवर ने जीत दर्ज कर अपनी मजबूत पकड़ दिखाई थी। 2000 में भी RJD के खाते में यह सीट गई। लेकिन 2005 का चुनाव इस परंपरा को तोड़ गया, जब बीजेपी के अशोक कुमार यादव ने गुलाम सरवर को मात दी। इसके बाद 2010 तक बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा बनाए रखा। हालांकि, 2015 में फराज फातमी की जीत के साथ RJD ने वापसी की और सियासी समीकरण फिर से बदल गए।
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2020 का विधानसभा चुनाव इस सीट के लिए बेहद रोचक रहा। बीजेपी ने अपने प्रत्याशी मुरारी मोहन झा के जरिए पूर्व वित्त मंत्री और दिग्गज नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी को 5126 वोटों से शिकस्त दी। इस चुनाव में मुरारी मोहन झा को 76372 वोट मिले जबकि सिद्दीकी को 71246 वोट हासिल हुए। खास बात यह रही कि वोट शेयर में बीजेपी को 46.75% और आरजेडी को 43.61% समर्थन मिला। वहीं तीसरे स्थान पर रहे निर्दलीय प्रत्याशी योगेश रंजन को मात्र 3304 वोट मिले, और 2968 मतदाताओं ने नोटा दबाकर अपनी नाराजगी जताई।
जातीय समीकरण
इस सीट का जातीय समीकरण भी चुनावी नतीजों में बड़ा रोल निभाता है। यहां यादव, ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। रविदास और पासवान समुदाय का वोट भी उम्मीदवारों की किस्मत तय करता है। केवटी विधानसभा क्षेत्र 26 पंचायतों से बना है, जिसमें 19 पंचायतें केवटी प्रखंड और 12 पंचायतें सिंहवाड़ा प्रखंड से आती हैं। मतदाताओं की कुल संख्या 3,04,192 है, जिनमें 1,60,874 पुरुष, 1,43,313 महिला और 5 तृतीय लिंगी मतदाता शामिल हैं।
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इस तरह, केवटी सीट का इतिहास बताता है कि यहां की सियासत कभी एकतरफा नहीं रही। 2025 के चुनाव से पहले भी यह सीट बिहार की राजनीति में चर्चा का केंद्र बनी हुई है, क्योंकि यहां हर बार टक्कर आरजेडी और बीजेपी के बीच कांटे की होती रही है। आने वाला चुनाव यह तय करेगा कि क्या बीजेपी अपना किला बचा पाएगी या आरजेडी एक बार फिर मजबूत वापसी करेगी।






















