दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट के फैसले ने नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग मामले (National Herald Case) में राजनीतिक और कानूनी बहस को एक नया मोड़ दे दिया है। अदालत ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय यानी ED की चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया है। इस आदेश को गांधी परिवार के लिए बड़ी राहत के तौर पर देखा जा रहा है, वहीं विपक्ष इसे कथित राजनीतिक प्रतिशोध के खिलाफ न्यायिक संतुलन की जीत बता रहा है।
कांग्रेस लगातार आरोप लगाती रही है कि इस मामले का इस्तेमाल गांधी परिवार को निशाना बनाने और विपक्षी राजनीति को दबाने के लिए किया गया। अदालत के ताजा फैसले के बाद कांग्रेस के इन आरोपों को नया बल मिला है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि भाजपा राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से इस तरह के मामले आगे बढ़ा रही थी। उनका कहना है कि इस केस में कोई FIR नहीं थी और सिर्फ गांधी परिवार को परेशान करने के इरादे से कार्रवाई की गई। खरगे ने ‘सत्यमेव जयते’ का नारा दोहराते हुए कहा कि अदालत का फैसला सच्चाई की जीत है।
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बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने भी इस निर्णय को शुरुआत से ही कमजोर बताए जा रहे केस की तार्किक परिणति करार दिया। उन्होंने कहा कि शुरूआत से ही इस मामले में कोई जान नहीं थी। जानबूझकर भाजपा राहुल गांधी और सोनिया गांधी की छवि बर्बाद करने के लिए उन्हें फंसा रही थी। भाजपा जब-जब कमजोर होती है, नेहरू जी, सोनिया गांधी या राहुल गांधी का नाम लेकर मजबूत होना चाहती है। नेशनल हेराल्ड केस बंद हो चुका था लेकिन एक निजी शिकायत के बाद ये मामला फिर खुला। हमारे नेता से 28-28 घंटे और 56-56 घंटे पूछताछ हुई लेकिन अंत में कुछ नहीं निकला।
इस फैसले पर विपक्षी दलों की प्रतिक्रियाएं भी तीखी रहीं। शिवसेना (UBT) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि सरकार को इस पूरे मामले पर माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि अदालत के फैसले से उसके झूठ उजागर हो गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि ED के जरिए राजनीतिक एजेंडा चलाया जा रहा था और आज कोर्ट ने ऐसे ही मुद्दे को खारिज कर दिया, जिसमें न तो तथ्य थे और न ही सच्चाई। प्रियंका चतुर्वेदी ने यह भी कहा कि किसी जांच एजेंसी की स्वतंत्रता पर इस तरह सवाल उठना लोकतंत्र के लिए गंभीर संकेत है।
बता दें कि मंगलवार को राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश (पीसी एक्ट) विशाल गोगने ने स्पष्ट किया कि मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून यानी PMLA के तहत दाखिल की गई ED की शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है। अदालत का कहना है कि यह मामला किसी प्राथमिकी यानी FIR पर आधारित नहीं है, बल्कि एक निजी शिकायत से जुड़ा हुआ है। PMLA के प्रावधानों के तहत FIR के अभाव में इस तरह की कार्यवाही टिकाऊ नहीं मानी जा सकती। अदालत की यही कानूनी व्याख्या इस पूरे मामले का केंद्र बिंदु बन गई है।






















