बिहार में 1 अगस्त को जारी की गई प्रारूप मतदाता सूची (SIR ड्राफ्ट) को लेकर आम लोगों की तरफ से तो दावे और आपत्तियां आ रही हैं, लेकिन अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने एक भी दावा या आपत्ति नहीं जताई है। पर भारत के चुनाव आयोग का कहना है कि अभी तक किसी भी राजनीतिक दल द्वारा एक भी दावा या आपत्ति प्रस्तुत नहीं की गई है। पिछले 5 दिनों में मतदाताओं की ओर से कुल 3659 दावे और आपत्तियाँ दर्ज की गई हैं। लेकिन राजनीतिक दलों की तरफ से अब तक जीरो दावा या आपत्ति सामने आई है।

उधर दिल्ली में विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) के कई घटक दलों के सांसदों ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का विरोध करते हुए बुधवार को संसद भवन परिसर में प्रदर्शन किया। संसद के ‘मकर द्वार’ के निकट हुए इस विरोध प्रदर्शन में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा और कई अन्य दलों के सांसद शामिल हुए।
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विपक्षी सांसदों ने एक बड़ा बैनर भी ले रखा था, जिस पर ‘डिस्कशन नॉट डिलीशन’ (चर्चा करो, नाम नहीं हटाओ) लिखा हुआ था। विपक्षी सांसदों ने ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ और ‘एसएआईआर वापस लो’ के नारे लगाए. विरोध प्रदर्शन से पहले विपक्षी नेताओं ने संसद भवन परिसर में बैठक की, जिसमें संसद के मानसून सत्र में आगे की रणनीति पर चर्चा की गई।
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कांग्रेस ने कहा कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसएआईआर) पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा की मांग से विपक्ष कोई समझौता नहीं करेगा। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि एसएआईआर के माध्यम से ‘वोटबंदी और वोटचोरी’ की साजिश रची गई है. रमेश ने ‘एक्स’ पर अपने पोस्ट में कहा , ‘राज्यसभा में सभापति का पद एक सतत संस्था है, इस पर कौन बैठा है इससे अंतर नहीं पड़ता है। कल राज्यसभा के उपसभापति ने यह निर्णय दिया कि 14 दिसंबर 1988 को तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष ने कहा था कि चुनाव आयोग से जुड़ा कोई भी विषय संसद में चर्चा योग्य नहीं है, इसलिए इस पर चर्चा नहीं हो सकती।’