Nokha Vidhansabha 2025: रोहतास जिले की अहम नोखा विधानसभा सीट (संख्या 211) एक बार फिर बिहार की राजनीति के केंद्र में है। यह सीट बिहार की उन परंपरागत सीटों में से एक है जिसने राज्य की राजनीति की दिशा कई बार बदली है। सामान्य श्रेणी की यह सीट जातीय समीकरण, पार्टी स्विंग और उम्मीदवारों की लोकप्रियता के संतुलन पर हर बार नया इतिहास लिखती रही है।
चुनावी इतिहास
1952 से अब तक 17 बार हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस, भाजपा, राजद और जनता परिवार की पार्टियों ने बारी-बारी से इस सीट पर कब्जा जमाया है। कांग्रेस ने शुरुआती दशकों में इस क्षेत्र पर मजबूत पकड़ बनाए रखी थी। 1967 तक कांग्रेस यहां लगातार जीतती रही, लेकिन 2000 के बाद यह सीट भाजपा की मजबूत गढ़ बन गई।
Dinara Vidhan Sabha 2025: बदलते राजनीतिक समीकरण और जातीय गणित की चुनौती बना रहा चुनाव को बेहद रोचक
नोखा विधानसभा की राजनीति में भाजपा नेता रामेश्वरम प्रसाद का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। उन्होंने 2000, फरवरी 2005, अक्टूबर 2005 और 2010 में लगातार चार बार भाजपा को विजय दिलाई। उनके कार्यकाल में भाजपा का वोटबैंक भूमिहार जाति के साथ अन्य सवर्ण समुदायों में भी मजबूत हुआ।
2015 और 2020 में हालांकि यह गढ़ राजद ने छीन लिया। अनीता देवी ने दो बार लगातार जीत दर्ज कर इस सीट पर महिलाओं और पिछड़ी जातियों के समर्थन से नया समीकरण खड़ा कर दिया। 2020 के चुनाव में अनीता देवी ने जदयू के नगेंद्र चंद्रवंशी को 15 हजार से ज्यादा वोटों से हराया, जबकि एलजेपी के कृष्ण कबीर तीसरे स्थान पर रहे।राजद की अनीता देवी को यादव और दलित मतदाताओं के अलावा मुस्लिम समुदाय से भी पर्याप्त समर्थन मिला। इसने भाजपा-जदयू गठबंधन की पारंपरिक बढ़त को कमजोर कर दिया।
जातीय समीकरण
नोखा विधानसभा में लगभग 1.98 लाख मतदाता हैं। इनमें भूमिहार (25%) सबसे प्रभावशाली माने जाते हैं और यह समूह भाजपा का पारंपरिक वोटबैंक है। यादव (18%) समुदाय राजद की रीढ़ है, जबकि कुशवाहा (12%) मतदाता प्रायः एनडीए गठबंधन की ओर झुकते हैं। इसके अलावा, दलित (22%) और मुस्लिम (8%) मतदाता चुनावी समीकरण को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं। अनुसूचित जातियों में मुख्य रूप से चमार और दुसाध, जबकि अनुसूचित जनजाति में चेऱो जनजाति की मौजूदगी है।
राजद जहां यादव-दलित-मुस्लिम समीकरण के दम पर मैदान में है, वहीं भाजपा 2025 में भूमिहार और कुशवाहा मतदाताओं को एकजुट करने की रणनीति बना रही है। पार्टी रामेश्वरम प्रसाद के बाद नए चेहरों को आगे बढ़ाने की कोशिश में है ताकि स्थानीय असंतोष को संतुलित किया जा सके।






















