मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान सामने आए हिजाब विवाद (Nusrat Parveen Hijab Controversy) ने अब नया मोड़ ले लिया है। जिस महिला डॉक्टर नुसरत परवीन का हिजाब उस कार्यक्रम में हटाया गया था, उन्होंने बिहार सरकार की नौकरी जॉइन न करने का मन बना लिया है। यह फैसला न केवल प्रशासनिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है, बल्कि सामाजिक और संवैधानिक मूल्यों को लेकर भी कई सवाल खड़े कर रहा है।
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नुसरत परवीन के भाई ने एक मीडिया चैनल से बातचीत में स्पष्ट किया कि उनकी बहन ने नौकरी नहीं करने का पक्का निर्णय कर लिया है। परिवार की ओर से उन्हें लगातार समझाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन फिलहाल नुसरत मानसिक रूप से गहरे आघात में हैं। उनके भाई का कहना है कि परिवार उन्हें यह समझा रहा है कि अगर गलती किसी और की है, तो उसका खामियाजा उन्हें क्यों भुगतना चाहिए और किसी दूसरे की वजह से करियर जैसा अहम फैसला क्यों छोड़ना चाहिए। इसके बावजूद नुसरत अभी उस मानसिक स्थिति में नहीं हैं कि वे इस पूरे घटनाक्रम को सामान्य रूप से ले सकें।
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जानकारी के मुताबिक नुसरत परवीन को 20 दिसंबर को बिहार सरकार की नौकरी जॉइन करनी थी। यह नियुक्ति उनके लिए एक स्थिर और सम्मानजनक भविष्य की शुरुआत मानी जा रही थी, लेकिन विवादित घटना के बाद उनका भरोसा बुरी तरह डगमगा गया। जानकार मानते हैं कि यह मामला केवल एक व्यक्तिगत निर्णय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राज्य में कार्यस्थल पर सम्मान, धार्मिक स्वतंत्रता और महिला सुरक्षा जैसे बड़े मुद्दों को भी सामने लाता है।




















