बिहार में कानून व्यवस्था को लेकर उठते सवालों के बीच पटना सहित राज्य के 18 आईपीएस अधिकारियों का तबादला किया गया है। इस प्रशासनिक फेरबदल के बाद नीतीश कुमार की सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनसुराज प्रमुख प्रशांत किशोर ने ट्रांसफर को लेकर सरकार की मंशा और प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं।
प्रशांत किशोर ने कड़ा हमला बोलते हुए कहा, “सवाल यह नहीं है कि आईपीएस अफसरों का ट्रांसफर हुआ है, असली सवाल यह है कि यह ट्रांसफर किया किसने है।” उन्होंने कहा कि बिहार में कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति के बीच केवल ट्रांसफर-पोस्टिंग कर सरकार पल्ला झाड़ रही है। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कार्यशैली पर भी टिप्पणी करते हुए कहा, “नीतीश कुमार को अपने कैबिनेट मंत्रियों के नाम याद नहीं रहते, ऐसे में वह अधिकारियों का ट्रांसफर कैसे कर सकते हैं? सबको पता है यह सब किसके इशारे पर हो रहा है।”
इस मामले में राजद ने भी सरकार को घेरा है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता शक्ति यादव ने कहा, “बिहार में ट्रांसफर-पोस्टिंग एक उद्योग बन चुका है। डीके टैक्स प्रभावी है। कुछ दिन के लिए यहां के एसपी बनो, फिर वहां चले जाओ। यह सिस्टम पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुका है।” उन्होंने कहा कि प्रदेश की कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है और सरकार का इकबाल खत्म हो चुका है।
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शक्ति यादव ने आरोप लगाया कि अधिकारियों की पोस्टिंग में जातिगत समीकरणों को तवज्जो दी जा रही है। “सरकार यह देखती है कि कौन अधिकारी किस जाति का है और क्या वह उनके हित में काम करेगा। ऐसे में जब सरकार ही नियमों का पालन नहीं कर रही, तो अधिकारी क्या कर सकते हैं?” उन्होंने मुख्यमंत्री की मानसिक स्थिति को लेकर भी विवादित टिप्पणी की, “सीएम जबतक दवा के असर में रहते हैं, तब तक काम करते हैं।”
इस पूरे घटनाक्रम ने बिहार की राजनीति में एक बार फिर ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर गंभीर बहस छेड़ दी है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार कानून व्यवस्था की बजाय राजनीतिक लाभ के लिए प्रशासनिक निर्णय ले रही है, वहीं सरकार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया फिलहाल नहीं आई है।