लोकसभा में पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव (Pappu Yadav) ने आरोप लगाया कि बिहार के कई जिलों में गरीबों, दलितों और छोटे दुकानदारों को बिना नोटिस, बिना कानूनी प्रक्रिया और बिना पुनर्वास की व्यवस्था के जबरन हटाया जा रहा है। पप्पू यादव ने कहा कि यह कोई अलग-अलग घटनाएँ नहीं, बल्कि एक “संगठित सरकारी पैटर्न” है, जिसने राज्य के हजारों परिवारों को असुरक्षा की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है।
उन्होंने पूर्णिया के नगर निगम क्षेत्र, पूर्णिया पूर्व हरदा, मझैली धमदाहा, रुपौली, बरहरा, नालंदा, बेगूसराय, पटना, पाटलीपुत्रा, डुमरांव, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी और दरभंगा जैसे क्षेत्रों का जिक्र किया जहां गरीब परिवार पीढ़ियों से रह रहे थे, लेकिन हाल के महीनों में अचानक उन्हें अवैध घोषित कर दिया गया। पप्पू यादव ने सदन में कहा कि गरीबों की यह व्यापक बेदखली “कानून के नाम पर की जा रही क्रूरता” है, जिसमें स्थानीय दुकानदार, ठेला-पटरी वाले, सब्जी-फल विक्रेता और दिहाड़ी मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।
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बहस के दौरान पप्पू यादव ने विशेष रूप से अरोरा गुहा बस्ती का उदाहरण रखा, जहां लगभग 150 दलित परिवार कई पीढ़ियों से रहते थे। उन्होंने बताया कि उसी बस्ती में विधायक निधि से सड़क बन चुकी है, बिजली बिल का भुगतान उनके स्तर से होता रहा है और कई परिवारों को इंदिरा आवास भी मिला हुआ है। इसके बावजूद पूरे गांव को बिना कानूनी नोटिस, बिना कोर्ट प्रक्रिया और बिना वैकल्पिक व्यवस्था के बुलडोजर से ढहा दिया गया। यह उदाहरण उन्होंने इस बात के सबूत के रूप में पेश किया कि प्रशासन खुद अपनी नीतियों और योजनाओं का खंडन कर रहा है।
सांसद ने बेगूसराय की उस हालिया कार्रवाई का भी मुद्दा उठाया, जिसमें महादलित बस्ती को तोड़ा गया, बुजुर्गों और महिलाओं पर लाठीचार्ज हुआ और परिवारों को रातों-रात सड़क पर छोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि यह “न्याय के नाम पर अत्याचार” है, जिसे गरीब सहन नहीं कर सकते और न ही सरकार को इसकी अनुमति मिलनी चाहिए।
लोकसभा में अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए पप्पू यादव ने कहा कि छह-छह पीढ़ियों से रह रहे परिवारों को अचानक अवैध घोषित करना नियमों का पालन नहीं, बल्कि सामाजिक उत्पीड़न है। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार बताए कि जब तक गरीबों को उसी पंचायत में पांच डिस्मिल जमीन नहीं दी जाती या शहरों में दुकानों का आवंटन नहीं होता, तब तक उन्हें उजाड़ा क्यों जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह नीति न केवल अमानवीय है, बल्कि गरीबों की आजीविका पर प्रत्यक्ष हमला है।
पप्पू यादव ने केंद्र सरकार और बिहार सरकार विशेषकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मांग की कि राज्य में गरीबों के पुनर्वास की स्पष्ट और लागू करने योग्य नीति बनाई जाए। उन्होंने यह भी कहा कि हर जिले में हो रही ऐसी घटनाओं की जांच कराई जाए, ताकि जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान हो सके और पीड़ित परिवारों को न्याय मिल सके।






















