पटना हाई कोर्ट ने बिहार के दाखिल-खारिज कानून में जमाबंदी रद्द करने के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर संज्ञान लिया है। कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन एवं न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने राज्य सरकार को इस मामले पर चार हफ्ते के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है।
याचिका में क्या कहा गया?
याचिकाकर्ता का कहना है कि जिलों के अपर समाहर्ता दशकों पुराने जमाबंदियों को बिना किसी ठोस कारण के रद्द कर देते हैं। जमाबंदी भूमि के स्वामित्व का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है और इसे रद्द करने से लोगों के अधिकारों का हनन होता है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि राजस्व अधिकारियों को जमाबंदी रद्द करने का अधिकार देकर सरकार संविधान के अनुच्छेद 300-ए का उल्लंघन कर रही है।
कोर्ट का फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
यह फैसला बिहार के लाखों लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है जिनके पास जमीन है। इस फैसले से जमीन से जुड़े विवादों में कमी आ सकती है और लोगों को न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ सकती है। अब राज्य सरकार को कोर्ट को यह बताना होगा कि जमाबंदी रद्द करने के प्रावधान को क्यों उचित माना जाता है। अगर सरकार अपना पक्ष मजबूती से रखने में नाकाम रहती है तो कोर्ट इस प्रावधान को रद्द कर सकता है।
इस फैसले का क्या प्रभाव हो सकता है?
- जमीन से जुड़े विवादों में कमी: इस फैसले से जमीन से जुड़े विवादों में कमी आ सकती है।
- लोगों को न्याय मिलेगा: इस फैसले से लोगों को न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ सकती है।
- राजस्व अधिकारियों की मनमानी पर लगाम: इस फैसले से राजस्व अधिकारियों की मनमानी पर लगाम लग सकती है।
- राज्य सरकार पर दबाव: इस फैसले से राज्य सरकार पर एक नई नीति बनाने का दबाव बढ़ सकता है जो जमीन से जुड़े मामलों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करे।